2014 में बीजेपी को अपने बूते बहुमत मिला तो कहा गया कि गठबंधन सरकारों का दौर खत्म हो गया, पिछले पांच साल में बीजेपी के सहयोगियों ने खूब अपमान सहा और दरकिनार होने की शिकायतें की, टीडीपी और आरएलएसपी जैसे दल अलग हो गए तो जेडीयू जैसे दल वापस आ गए, चुनाव सिर पर आए तो बीजेपी ने अपमान भूल कर शिवसेना को गले लगाया, बिहार में जेडीयू को साथ लेने के लिए जीतीं हुई सीटें सरेंडर कर दीं, झारखंड में आजसू को साथ लेने के लिए पांच बार जीती सीट उसे दे डाली, सिटीजन शिप बिल पर अलग हुए एजीपी को फिर साथ लिया, अब एनडीए में छोटी-बड़ी तीस से ज्यादा पार्टियां हो गई हैं, उधर, दस साल गठबंधन की सरकार चलाने के बाद कांग्रेस को लगा कि मोदी का मुकाबला गठबंधन से ही हो सकता है, महागठबंधन का फार्मूला सामने आया, साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाने की बड़ी बड़ी बातें हुईं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात, सोमवार से नामांकन शुरु होगा और अभी तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र को छोड़ किसी अन्य राज्य में कांग्रेस सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा नहीं कर पाया है, उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस को अंगूठा दिखा दिया, मायावती ने ऐलान कर दिया कि पूरे देश में कहीं भी कांग्रेस से समझौता नहीं होगा, ममता बनर्जी ने सारे उम्मीदवार घोषित कर गठबंधन का रास्ता बंद कर दिया, लेफ्ट अब भी तय नहीं कर पाई कि है कांग्रेस से केरल में कुश्ती और बंगाल में दोस्ती कैसे करे, मोदी विपक्ष के महागठबंधन को महामिलावट कहते हैं पर खुद वाजपेयी से भी ज्यादा पार्टियों को साथ लेकर चल रहे हैं, बीजेपी कहती है मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेंगे लेकिन गठबंधन करने के लिए नतमस्तक हो गई, तो महामिलावटी गठबंधन किसका है? कांग्रेस का या फिर बीजेपी का? जब नेता के नाम पर ही चुनाव लड़ना है तो फिर ऐसे में गठबंधन मजबूरी की निशानी है या फिर मजबूती की? आज का मुकाबला इसी पर, हमारे साथ हैं बीजेपी नेता अमिताभ सिन्हा, कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी, जेडीयू महासचिव के सी त्यागी, बीएसपी प्रवक्ता सुधीं भदौरिया और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह,