हाल के दिनों हास्य एवं व्यंग्य को लेकर कई तरह की शिकायतें देखने को मिली हैं। कई लोगों का कहना है कि इसमें भाषा का स्तर गिरता जा रहा है और लोग मज़ाक के नाम पर अपमान कर रहे हैं। इस बीच हास्य के मानक तय करने की भी मांग उठ रही है। तो ऐसे में सवाल यह कि क्या इन दिनों व्यंग्य की परिभाषा बदल रही है या फिर हम हंसना भूल रहे हैं? मुकाबला में आज इसी मुद्दे पर हास्य एवं व्यंग्यकारों के जरिये एक खास नजर....