1923 में सियालकोट में पैदा हुए कुलदीप नैयर ने 95 साल की जीवन यात्रा पूरी कर अंतिम सांस ले ली. वे नहीं हैं मगर उनका जीवन हमारे सामने एक दस्तावेज़ के रूप में मौजूद है. बंटवारे के वक्त नफ़रतों के सैलाब से गुज़रते हुए वे 13 सितंबर 1943 को भारत आते हैं. जिस वक्त दोनों तरफ से मार काट मची थी उस वक्त अपना घर उजड़ जाने के बाद भी कुलदीप नैयर साफ साफ देख सके कि इस बदहवासी की कोई मंज़िल नहीं है. वे ता उम्र इस नफ़रत के खिलाफ लड़ते रहे. लाहौर से लॉ की डिग्री लेकर भारत आए थे, मगर बन गए पत्रकार. जबकि पत्रकारिता के कोर्स में लाहौर के डिग्री कॉलेज में फेल हो गए थे. जब पत्रकार बने तो इतना लिखा इतना लिखा कि अखबार पढ़ने वाला शायद ही कोई पाठक होगा जिसने कुलदीप नैयर का लिखा न पढ़ा होगा. उनके लिखने का एक मकसद था. भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान के बीच नफरत की राजनीति ख़त्म हो. शांति सदभाव और सहयोग का माहौल बने. उन्हें यकीन था कि एक दिन नफ़रत हारेगी और मोहब्बत जीतेगी.