16 फरवरी की रात, एक बेबस बेटी ने अपने माता-पिता को फ़ोन किया...अब्बू, मुझे बचा लो...ये हमारी आखिरी बात हो सकती है...मुझे फांसी होने वाली है...फोन के उस पार खड़े पिता की आवाज़ कांप गई....उनकी सांसें रुक गईं....लेकिन वह कुछ नहीं कर सकते थे...सिर्फ सुन सकते थे...अपनी बेटी की आखिरी पुकार...अबू धाबी की एक जेल...एक अंधेरी कोठरी...और एक बेटी जो बेगुनाह होते हुए भी फांसी का इंतज़ार कर रही है...बांदा की 33 साल की शहजादी, जो 2021 में बेहतर ज़िंदगी की तलाश में विदेश गई थी, आज फांसी के तख्ते के करीब खड़ी है...उसने अपने अब्बू को फोन किया...उसकी आवाज़ कांप रही थी...आंखों में आंसू थे...मौत का डर था...लेकिन सबसे बड़ा दर्द था...बेबसी का