एक तरफ सियासत और एक तरफ मोहब्बत का पैमाना चलता आ रहा है. मोहब्बत की बुनियाद में ही इस देश की विभिन्नता, अनेकता में एकता जैसे शब्द चरितार्थ हो रहे हैं. करीब 800 सौ साल से चली आ रही यह परंपरा आज भी लोगों के लिए उतनी ही प्रासंगिक नजर आती है. आज हम 2025 में भी खड़े होकर देखते हैं तो पाते हैं कि निजामुद्दीन की दरगाह पर हर समुदाय के चाहे वह बच्चे हो या बुजुर्ग, पुरुष हो या महिला या फिर किन्नर सभी पीले रंग में सराबोर नजर आ रहे थे. सबके भीतर इस वसंत के त्यौहार मनाने के लिए उत्साह बेहद के दायरे में देखने को मिला.