हाथरस सत्संग हादसे में 121 लोगों की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर एक 'बाबा' को सुर्खियों में ला दिया है. सवाल उठने लगे हैं कि अपनी सुरक्षा को यूं दांव पर लगाकर और इतनी भयंकर गर्मी में छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्गों के साथ आखिर लोग इस तरह के कार्यक्रमों में कैसे पहुंच जाते हैं. हादसे के बाद से चारों ओर चीख पुकार दिख रही है. कोई अपने परिजनों को ढूंढ रहा है तो कोई किसी अपने के शव का इंतजार कर रहा है. मां बिलख रही हैं, पति रो रहा है, बच्चों की आंखें अपनों को ढूंढ रही है. बहुत ही दुखद मंजर है. किसी ने नहीं सोचा था कि आनंद के लिए सत्संग में जाएंगे तो वापस लौटकर ही नहीं आएंगे. एक दादी बिछड़ी अपनी पोती की तलाश में है तो वहीं एक सास माथा पीटपीट कर अपनी बहू को ढूंढ रही है. पीड़ित रातभर अपने परिजनों को इधर से उधर ढूंढते रहे, ना किसी को चैन है ना किसी को होश, भूखे प्यासे लोगों को कुछ खाने या पीने की पूछो तो मना कर रहे हैं..