तीसरी बार दिल्ली केजरीवाल की हुई और दिल्ली वालों के दिल में 'आप' ही है ये साफ हो गया. चुनाव में जबरदस्त जीत के बाद जो तमाम तरह के आंकलन हुए उसमें एक ये बात भी सामने आई कि केजरीवाल की राजनीति अब बदल गई है. वो बात बात में नाराज होकर धरने पर बैठ जाने वाले मुख्यमंत्री से आगे बढ़कर एक मंझे हुए नेता नजर आ रहे हैं. शपथ समारोह में प्रधानमंत्र को बुलाया, बीजेपी के नेताओं को बुलाया. वो अब केंद्र पर आरोप कम और मिल जुल कर सहयोग से काम करने की बात ज्यादा करते हैं. 2020 के चुनाव में केजरीवाल ने बिल्कुल 2014 के मोदी स्टाइल में कैंपेन किया. विकास का मंत्र दोहराया और बांटने की राजनीति से दूर रहे. चाहे बीजेपी ने कितना भी उन्हें शाहीन बाग के मुद्दे में घसीटना चाहा वो किनारा करते रहे.
तो क्या केजरीवाल की राजनीति अब ज्यादा परिपक्व हो गई है? क्या अब वो केंद्र पर आरोप लगाने के बजाए मिल कर काम करने को तैयार हैं? केजरीवाल मॉडल चल पाएगा? क्या देश में दूसरी जगहों पर इसे दोहराया जा सकता है? अब क्या दिल्ली के आगे आप के लिए आसमान और भी है.