अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की मर्दव्यवस्था बहुत खराब हो चुकी है. सड़ गई है. सख़्त कानून और फांसी की मांग को लेकर न जाने कितने प्रदर्शन हुए मगर बहुत कुछ ऐसा ज़रूर है जो इसके बस की बात नहीं है. या तो भारत का पुरुष समाज भीतर से सड़ गया है. उसके मानस और मनोविज्ञान का जिन चीज़ों से निर्माण हो रहा है, उसे हम समझ नहीं पा रहे हैं. इस प्रश्न को लेकर गंभीर होने का समय आ गया है. बलात्कार मामलों में कानूनी सख्ती के अलावा इन पहलुओं पर ध्यान देना ही होगा. देर से सज़ा हो या जल्दी सज़ा हो, दोनों का बलात्कार के मामलों पर खास असर नहीं पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में बलात्कार को लेकर बहस चल रही है. मीडिया में बलात्कार की खबरों को देखकर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने स्वत संज्ञान लिया था. कोर्ट ने राज्यों के हाईकोर्ट में दर्ज बलात्कार के मामलों के आंकड़े मंगा लिए. 1 जनवरी 2019 से लेकर 30 जून 2019 तक 24, 212 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे. ये केस सिर्फ नाबालिग बच्चों और बच्चियों से संबंधित थे. इसी रिकार्ड को देखें तो 12,231 केस में पुलिस आरोप पत्र दायर कर चुकी थी और 11,981 केस में जांच कर रही थी. यानी कुछ सिस्टम बना है.