मीडिया में आने के बाद भी किसे फर्क पड़ा है कि सरदार सरोवर बांध में पानी भरना शुरू हुआ तो मध्य प्रदेश के 178 गांव डूब गए. पानी भर रहा था गुजरात में, गांव डूब रहे थे मध्य प्रदेश में. मुख्यमंत्री पत्र वत्र लिखने की औपचारिकता पूरी कर जाते हैं मगर गांवों का डूबना रुक नहीं पाता है. धार में खापरखेड़ा में रंजना हीरालाल गोरे के घर में पानी भर आया. रंजना अपने घर से निकलना ही नहीं चाहती थीं. किसी तरह निकाला गया लेकिन उनका घर डूब गया. परिवार कहता है कि अभी तक पुनर्वास का अनुदान नहीं मिला है, कहां जाएं. चिखल्दा में वाहिद भी बिखर गए. देखते देखते घर आंगन सब डूब गया. यहां मेधा पाटकर लड़ भी रही हैं लेकिन सोचिए कांगड़ा के किसानों के लिए तो कोई लड़ने वाला भी नहीं है. मेधा पाटकर को मीडिया जानता है फिर भी अब उनकी लड़ाई को दिखाने लिखने की औपचारिकता भी नहीं करता. कुछ हिस्सों में उनके आंदोलन की खबर आ जाती है लेकिन 170 से अधिक गांव डूब गए किसी को फर्क नहीं पड़ा. प्रवीण का घर डूब गया तो उसने नर्मदा में ही छलांग लगा दी. किसी तरह नाविकों ने उसे बचा लिया. आम लोग समझ नहीं पाए अपनी जान बचाए या मवेशी की या फिर अपना घर बचाए या गांव. पुनर्वास का दावा सरकार का कुछ होता है, किसान की बातें कुछ और होती हैं.