समाज का बड़ा हिस्सा गर्ल्स हॉस्टल को इसी तरह के स्टीरियोटाइप से देखता रहा है. जैसे हॉस्टल न हो, चिड़ियाघर का पिंजड़ा हो. लड़कियां हुनर से नहीं, आंचल के रंगों से पहचानी जाती हैं. जिन्हें देखकर नशा छा जाता है, पसीना छूट जाता है. मगर हॉस्टल की इस सत्ता को धीरे-धीरे चुनौती मिलनी शुरू हो गई है. लड़कियां बराबरी मांग रही हैं.