प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जो बहस हुई है, उससे यही पता चलता है कि कोई सरकार इस मामले में अपना काम नहीं कर रही है. जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता के सवालों के सामने चार-चार मुख्य सचिवों की हालत ऐसी हो गई थी जैसे अपना होम वर्क कापी घर भूल आए हों और पेट दर्द का बहाना बना रहे हों. अदालत ने किसानों का पक्ष लिया. साफ कर दिया कि पराली की समस्या किसानों की नहीं, राज्य की ज़िम्मेदारी है. सरकार द्वारा फंड की दलील नहीं स्वीकार की जा सकती है. किसानों को सज़ा देना कोई समाधान नहीं है. उन्हें मूल सुविधाएं और संसाधान मुहैया कराना ज़रूरी है. उनकी मदद की बजाए कानूनी कार्रवाई की आलोचना की और कहा कि इससे कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जाएगी. ग़रीब किसान आत्महत्या करने पर मजबूर होगा. मुख्य सचिवों से कहा कि आपको किसानों की मदद करनी होगी. अदालत ने आदेश दिया है कि छोटे और सीमांत किसानों को 7 दिनों के अंदर प्रति एकड़ 100 रुपये की मदद दी जाए ताकि वे पराली न जलाएं. पंजाब हरियाणा और यूपी के किसानों के लिए यह आदेश है. इसमें केंद्र का हिस्सा कितना होगा, बाद में तय होगा. कोर्ट ने यह भी कहा है कि तीन महीने के अंदर छोटे और सीमांत किसानों की हितों की रक्षा के लिए केंद्र व्यापक योजना बनाए जिसे पूरे देश में लागू होगा. मॉनिटरिंग कमेटी से कहा कि वह देखे कि कोर्ट के इन आदेशों का पालन नहीं होता.