एशियाड में खिलाड़ियों के जीत के बाद उनके लिए ट्वीट आने लगता है. उनको सम्मानित किया जाने लगता है. लेकिन ये सब बस कुछ दिन और फिर ज़्यादातर खिलाड़ियों को अपनी प्रैक्टिस जारी रखने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. खिलाड़ी हमेशा से शिकायत करते रहे हैं कि उन्हें सुविधाएं नहीं मिलती. एशियाड खेलों में सेपकट्रेका टीम इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले हरीश की कहानी भी अलग नहीं है. परिवार चलाने के लिए ये खिलाड़ी चाय बेच रहा है. आप सोचिए कि जिसे पूरा वक्त प्रैक्टिस के लिए देना चाहिए अब वो किसी तरह समय निकालकर प्रैक्टिस कर पाता है. क्या हरीश जैसे खिलाड़ियों की मदद नहीं की जा सकती? हम पदक की उम्मीद तो करते हैं लेकिन अगर वो प्रैक्टिस ही नहीं करेंगे तो फिर अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में कैसे पदक हासिल करेंगे.