बंधुआ मजदूरी सिर्फ सड़को, गलियों या दुकानों पर ही नजर नहीं आती बल्कि ऊची-ऊची इमारतों और बड़े शहरों में भी होती है. यहां मासूम कैदखानों की तरह घरों में कैद हो गए हैं. कहने को तो ये काम करते हैं, लेकिन कई बार इन्हें वेतन तक नहीं मिलता. हैरानी की बात यह है कि पढ़े लिखे लोग यह जानते हुए भी कि यह अपराध है फिर भी यह काम कर रहे हैं.