पहली बार ज्ञानपीठ का पुरस्कार किसी अंग्रेज़ी के लेखक को दिया गया है. ज्ञानपीठ पुरस्कार दूसरी भारतीय भाषाओं के लेखकों को मिलता रहा है मगर अंग्रेज़ी के लेखकों को कभी नहीं मिला. ऐसा नहीं था कि अंग्रेज़ी के लेखकों की दुनिया में धूम नहीं थी या उनकी रचनाएं श्रेष्ठ नहीं थीं. इस बार का ज्ञानपीठ पुरस्कार अमिताव घोष को दिया जा रहा है जो निस्संदेह ऐसे लेखक हैं जो किसी भी बड़े सम्मान के हक़दार हैं. उनके उपन्यास बेमिसाल हैं. इतिहास और कल्पना के घोल से जो रसायन वह तैयार करते हैं, जितनी गहराई से अपने विषय पर शोध करते हैं और उसे जिस बारीक़ी से रचना में बदलते हैं, वह आपको बिल्कुल हैरान छोड़ जाता है. भाषा, पर्यावरण, राजनीति- जैसे जीवन का कोई पहलू उनसे छूटता नहीं. 'सी ऑफ़ पॉपीज़़' में वे इस बात की ओर ध्यान खींचते हैं कि कैसे भारत में अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने यहां की खेती बरबाद की, आम फ़सलों की जगह अफीम उगाने को मजबूर किया और पूरे उत्तर भारत के सामाजिक-आर्थिक तंत्र को झकझोर दिया.