इस दल से उस दल में पलायन के कई अज्ञात कारण होते हैं. नेता कब अपनी निष्ठा बदल लें पता नहीं रहता. राजनीति अब उबर और ओला के प्लेटफार्म की तरह हो गई है. आप अपनी टैक्सी लीजिए जब मन करे ओला में चलाइये, मन न करे तो उबर में चलाइये. आप देखेंगे कि ऐसे दलों में कम नेता रहेंगे जो कई साल से एक ही पार्टी में होंगे. जिस प्लेटफार्म के पास सत्ता होगी, उस प्लेटफार्म पर हर दल से नेता आएंगे. अभी बीजेपी का गुड टाइम चल रहा है. राज्यसभा में तेलुगू देशम पार्टी के चार सांसदों ने उपसभापति से मुलाकात की और बीजेपी में शामिल होने की बात कही है. उन्हें बीजेपी की सदस्यता भी दे दी गई है. जब तेलुगू देशम पार्टी बीजेपी से अलग हो गई तब उसके नेताओं पर आयकर छापे पड़ने लगे. इन छापों को लेकर बीजेपी उन पर हमले करने लगी. सबसे ज़्यादा हमला हुआ वाई एस चौधरी और सी एम रमेश पर. बीजेपी इन्हें आंध प्रदेश का विजय माल्या कहने लगी. असली विजय माल्या तो नहीं आ सके लेकिन आंध्र के विजय माल्या अब बीजेपी में ही आ गए हैं.