Christmas 2021 : क्रिसमस नजदीक आता है तो हर बच्चे को इंतजार होता है कि एक सांता क्लॉज आएगा और उनकी हर विश पूरी करेगा. विश पूरी हो न हो जुराब में रखा कोई तोहफा उसे जरूर मिलेगा. सांता की कल्पना के बिना ये उत्सव ही अधूरा सा लगता है. लाल और सफेद रंग की पोशाक में एकदम सफेद उजली दाढ़ी और बाल, कंधे पर टंगा तोहफों से भरा झोला ही सांता की पहचान हैं. जिसका इंतजार तो हर साल क्रिसमस पर होता है. लेकिन ये कोई नहीं सोचता कि ये पर्व और सांता का नाम एक दूसरे से जुड़ा कैसे. क्यों जीसस क्राइस्ट के जन्म के दिन सांता को भी याद किया जाता है. सांता क्लॉज का ये नाम सेंट निकोलस के नाम पर पड़ा है. जिनका डच नाम था सिंटर क्लॉस. संत निकोलस को जीसस और मदर मैरी के बाद काफी अहम माना जाता है.
सेंट निकोलस की कहानी?
माना जा है कि सेंट निकोलस जीसस के गुजरने के तकरीबन 280 साल बाद संत निकोलस दुनिया में आए. बहुत कम उम्र में अपने माता पिता को खो देने वाले संत निकोलस गरीबी मे पले बढ़े. उनका मन हमेशा जीसस क्राइस्ट में ही रमा रहा. पहले वो पादरी बने और फिर बिशप बन गए. यीशु की भक्ति के साथ साथ उन्हें बच्चों को तोहफे देना काफी पसंद था. तोहफे देते समय उनकी यही कोशिश होती थी कि उन्हें कोई पहचान न सके इसलिए वो रात के अंधेरे में तोहफे देने निकलते थे.
एक कहानी ये भी
संत निकोलस, जिनकी वजह से सांता क्लॉज सबका फेवरेट बन गया उनसे जुड़ी वैसे तो कई कहानियां हैं. लेकिन एक कहानी दिल को छू लेने वाली है. ये कहानी है एक ऐसे पिता की जिनकी तीन बेटियां थीं. पिता इतना गरीब था कि उसके लिए बेटियों की शादी करना मुमकिन नहीं था. सेंट निकोलस को ये बात पता चली. तो, वो चुपचाप उस गरीब पिता के घर पहुंचे. उनके आंगन में सूख रही जुराबों में सोने के सिक्के रख दिए. इस तरह से सेंट निकोलस ने उन तीन बच्चियों की जिंदगी संवार दी. इन्हीं कहानियों के कारण जुराबों मेंं तोहफे मिलने की उम्मीद और परंपरा शुरू हुई. इसलिए क्रिसमस ट्री पर जुराब टांगने का भी चलन है.