UPSC परीक्षा में अटेम्प्ट और आयु सीमा में होनी चाहिए कमी, पूर्व आरबीआई गवर्नर की सिफारिशें

UPSC Exam: पूर्व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) गवर्नर डॉ. सुब्बाराव ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा (CSE) में व्यापक सुधारों की वकालत की. उन्होंने प्रयासों और आयु सीमा में कमी की सिफारिश की है. उन्होंने कहा कि इस परीक्षा के पीछे युवा अपना समय बर्बाद कर रहे हैं.

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UPSC परीक्षा में अटेम्प्ट और आयु सीमा में होनी चाहिए कमी
नई दिल्ली:

UPSC Exam's Reforms: पूर्व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) गवर्नर डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) सिविल सेवा परीक्षा (CSE) में व्यापक सुधारों की वकालत की है. उन्होंने मौजूदा प्रणाली को "मानव क्षमता की व्यापक बर्बादी" करार देते हुए कहा कि लाखों उम्मीदवार इस अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परीक्षा की तैयारी में वर्षों बिता देते हैं, लेकिन सफलता की संभावना बेहद कम होती है. उनके अनुसार, प्रत्येक सफल उम्मीदवार के पीछे कम से कम 10 अन्य उम्मीदवार होते हैं, जो वर्षों की मेहनत के बावजूद असफल होकर फिर से शून्य पर आ जाते हैं.यह न केवल समय और संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि कई उम्मीदवारों को वित्तीय और मानसिक संकट में भी धकेल देता है.

अटेम्प्ट और आयु सीमा में कमी की सिफारिश

डॉ. सुब्बाराव ने दो प्रमुख सुधारों का प्रस्ताव रखा है. पहला प्रस्ताव उन्होंने प्रयासों की अधिकतम संख्या और ऊपरी आयु सीमा में कमी की सिफारिश की है. वर्तमान में, उम्मीदवार 21 से 32 वर्ष की आयु के बीच छह बार परीक्षा दे सकते हैं. सुब्बाराव का सुझाव है कि इसे घटाकर तीन प्रयास और आयु सीमा 27 वर्ष तक सीमित कर दिया जाए. उनका मानना है कि लाखों उम्मीदवार केवल एक हजार पदों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे सफलता की संभावना नगण्य हो जाती है. फिर भी, उम्मीदवार अपने सभी प्रयासों को समाप्त करने तक कोशिश करते रहते हैं, जो "संक कॉस्ट फॉलसी" (पिछले निवेश को बर्बाद होने से बचाने की मानसिकता) का शिकार बन जाता है. उन्होंने कहा, "उम्मीदवार सोचते हैं कि 'मैंने इतना समय, पैसा और मेहनत लगाई है, अगर अब हार मान ली तो सब बर्बाद हो जाएगा. शायद इस बार मैं सफल हो जाऊं.'"

परीक्षा तकनीक पर निर्भरता का खतरा

1970 में स्वयं यूपीएससी परीक्षा देने वाले सुब्बाराव ने बताया कि उस समय केवल दो प्रयासों की अनुमति थी और आयु सीमा 21-24 वर्ष थी. उनका कहना है कि अब व्यवस्था दूसरी दिशा में "बहुत आगे" बढ़ गई है. उन्होंने चेतावनी दी कि छह प्रयासों की अनुमति देने वाली प्रणाली उन उम्मीदवारों को बढ़ावा देती है जो परीक्षा की तकनीक में महारत हासिल कर लेते हैं, न कि उनमें जो वास्तविक योग्यता रखते हैं. उन्होंने लिखा "ऐसी कोई भी परीक्षा जो छह मौके देती है, वह वास्तविक योग्यता के बजाय परीक्षा तकनीक में निपुणता को प्राथमिकता देती है."

अनुभवी पेशेवरों के लिए नया प्रवेश चैनल

सुब्बाराव का दूसरा प्रस्ताव 40-42 वर्ष की आयु के अनुभवी पेशेवरों के लिए एक संरचित, वार्षिक टियर-2 भर्ती चैनल शुरू करने का है. यह मौजूदा लेटरल एंट्री से अलग होगा और यूपीएससी प्रणाली का स्थायी हिस्सा होगा. इस चैनल के माध्यम से पेशेवर अपने मध्य-करियर में सिविल सेवा में प्रवेश कर सकेंगे. उनका मानना है कि ऐसे उम्मीदवार शासन में बाहरी दृष्टिकोण और अनुभव लाएंगे, जिससे सिविल सेवा अधिक प्रासंगिक, उपयोगी और संवेदनशील बन सकती है. उन्होंने कहा, "टियर-2 भर्तियां इन कमियों को पूरा करेंगी और सिविल सेवा को सामूहिक रूप से अधिक प्रभावी बनाएंगी."

युवा उम्मीदवारों का महत्व

सुब्बाराव ने जोर देकर कहा कि उनके प्रस्ताव मौजूदा युवा उम्मीदवारों के प्रवेश मार्ग को खत्म करने के लिए नहीं हैं. उनका मानना है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में युवाओं की भर्ती जारी रखने के कई फायदे हैं. "युवा लोग प्रशासन में उत्साह, जोश और नई ऊर्जा लाते हैं," उन्होंने लिखा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सिविल सेवा परीक्षा पिछले कुछ दशकों में काफी विकसित हुई है, लेकिन अभी भी सुधार की गुंजाइश है. डॉ. सुब्बाराव ने कहा कि यूपीएससी परीक्षा में सुधार न केवल उम्मीदवारों के लिए, बल्कि देश के प्रशासनिक ढांचे के लिए भी जरूरी है. उन्होंने कहा, "मैंने 50 साल पहले जो परीक्षा दी थी, उसमें बहुत सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी हमें और आगे बढ़ने की जरूरत है."

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