''मैंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल विश्वविद्यालय को दिए हैं और अब मैं अपनी नौकरी खोने के डर में जी रहा हूं.'' यह दर्द भले ही दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एक शिक्षक का है, लेकिन इसके माध्यम से उन्होंने शैक्षणिक सत्र 2022-23 से स्नातक पाठ्यक्रम की रूपरेखा (यूजीसीएफ) के कार्यान्वयन के कारण नौकरी छूटने की आशंका में जी रहे अंग्रेजी शिक्षकों की दुर्दशा को बयां किया है. ये भी पढ़ें- DU Faculty Recruitment 2022: डीयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के 62 पदों पर अप्लाई करने का मौका, आवेदन की तरीका यहां देखें
दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने फरवरी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार तैयार किए गए यूजीसीएफ-2022 को मंजूरी दी थी. कई शिक्षकों ने यूजीसीएफ की प्रस्तावित संरचना का विरोध करते हुए कहा कि योग्यता वृद्धि पाठ्यक्रम (एईसी) केवल संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में पेश किए जाते हैं और इसमें अंग्रेज़ी भाषा शामिल नहीं है. ये भी पढ़ें- Army recruitment rally 2022: अग्निपथ स्कीम के तहत अहमदनगर में होने जा रही सेना भर्ती रैली, देखें पूरी जानकारी
उन्होंने यह भी कहा कि यूजीसीएफ के कारण मौजूदा काम के बोझ (वर्कलोड) में लगभग 30 से 40 प्रतिशत की भारी कमी होगी और विशेष तौर पर अंग्रेज़ी विभाग प्रभावित होगा.
नाम न बताने की शर्त पर अंग्रेज़ी के एक शिक्षक ने बताया, ''मैं 2010 से डीयू के एक कॉलेज में अंग्रेज़ी विभाग में तदर्थ शिक्षक के तौर पर पढ़ा रहा हूं. चूंकि यह एक विज्ञान कॉलेज है, इसलिए हमारा कार्यभार मुख्य रूप से एईसी पेपर पर निर्भर है.''
उन्होंने कहा, ''12 साल तक ईमानदारी से काम करने के बाद, मैं अब अपनी नौकरी खोने की आशंका में जी रहा हूं. मेरे जैसे लोगों के लिए क्या किया जाएगा, जिन्होंने एक दिन स्थायी नौकरी की उम्मीद में विश्वविद्यालय को अपने प्रमुख वर्ष दिए हैं?''
उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय जल्द ही फिर से खुलने वाले हैं. शिक्षकों ने तर्क दिया कि ऐसे संकेत हैं कि महाविद्यालयों में अंग्रेज़ी विभाग का कार्यभार कम से कम एक तिहाई घट जाएगा.
किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर रुद्राशीष चक्रवर्ती ने कहा, ''मेरे कॉलेज में, अगले सत्र में 60 व्याख्यानों का नुकसान हुआ है, हंसराज कॉलेज में यह 50 हैं,रामजस में यह लगभग 60 से अधिक हैं, और पूरे विश्वविद्यालय में इसी तरह की कहानी है.''
चक्रवर्ती का मानना है कि केशव महाविद्यालय, जीजीएस कॉलेज ऑफ कॉमर्स, इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स (आईएचई), लेडी इरविन कॉलेज, भास्कराचार्य और राजगुरु कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज जैसे अंग्रेज़ी (ऑनर्स) या बीए प्रोग्राम की पेशकश नहीं करने वाले कॉलेजों में काम करने वाले शिक्षकों के लिए स्थिति बदतर होगी.
दिल्ली विश्वविद्यालय शैक्षणिक परिषद के एक सदस्य, मिथुनराज धूसिया ने कहा, ''डीयू के महाविद्यालयों में अंग्रेज़ी विभाग के मौजूदा तदर्थ और अतिथि शिक्षकों को नुकसान होने वाला है. हमने इस मामले को अकादमिक परिषद की बैठकों में कई बार उठाया है लेकिन अभी तक आसन्न विस्थापन को रोकने के लिए विश्वविद्यालय ने कोई कदम नहीं उठाया है.''
डीयू की नयी संरचना को ''नासमझ'' करार देते हुए, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव और डीयू शैक्षणिक परिषद की पूर्व सदस्य आभा देव हबीब ने कहा कि हर कॉलेज में लगभग दो से तीन अंग्रेज़ी के शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.
उन्होंने कहा, ''विश्वविद्यालय ने यूजीसीएफ पेश किया है, जिसके अनुसार अंग्रेज़ी अब अनिवार्य मॉड्यूल नहीं है और छात्रों को 13 भाषाओं में से चुनने के लिए कहा गया है. कुल मिलाकर, विश्वविद्यालय भर में 100 शिक्षकों की नौकरी छूटने की उम्मीद है.''
इस साल मार्च में दिल्ली विश्वविद्यालय के 400 से अधिक अंग्रेज़ी शिक्षकों ने कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि 2022-23 शैक्षणिक सत्र से यूजीसीएफ के कार्यान्वयन के कारण उनके विभाग का काम का बोझ ''बहुत कम'' होगा और आजीविका का नुकसान होगा.