'कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता' दिल्ली का इन्फ्लुएंसर एक दिन के लिए बना डिलिवरी बॉय

Work Dignity: किसी के काम को लेकर उस व्यक्ति को सम्मान देना, समाज में असामनता को दर्शाता है. भेदभाव केवल जाति तक ही नहीं आपके काम को लेकर भी होने लगा है. ऐसा कहना है दिल्ली के एक इन्फ़्लुएंसर का.

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नई दिल्ली:

अक्सर आपने फिल्मों में ये डायलॉग सुना होगा कि 'कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता'. लेकिन क्या सच में ऐसा होता है कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है? हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. लेकिन कभी-कभी हम अपने आस-पास ऐसी चीजे देख लेते हैं कि विश्वास नहीं होता. हाल में दिल्ली के एक फेमस इन्फ़्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म के क्रिएटिव हेड सलमान सलीम ने एक दिन के लिए ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट बनने का फैसला किया. ताकि वह ये समझ सके कि डिलिवरी बॉय को रोजाना किन परेशानियों को झेलना पड़ता है. 

आपके काम से भी लोग करते हैं जज

एक दिन के इस अनुभव को सलमान सलीम ने सोशल मीडिया पर शेयर किया. उन्होंने बताया कि छुआछुत केवल जाति तक ही सीमित नहीं है. आपके  काम को लेकर भी जज करते हैं  आप जैसा काम करते हैं उसी के हिसाब से आपको सम्मान दिया जाता है. डिलिवरी बॉय के काम को एक सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता है. लिंक्डइन पोस्ट में, सलीम ने कहा कि डिलीवरी पार्टनर के रूप में एक दिन बिताने से काम करने के बाद उनका नजरिया बदल गया. उन्होंने कहा कि लंबे ट्रैफिक जाम और खराब मौसम से निपटने के बावजूद, डिलीवरी एजेंटों को वह सम्मान नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं.

अमीर और शिक्षित लोग करते हैं भेदभाव

उन्होंने कहा, "सिर्फ पुलिसकर्मी ही नहीं, एसी कारों में बैठे लोग भी डिलीवरी करने वालों से दूसरे दर्जे के यात्रियों जैसा व्यवहार करते हैं." अपने सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने लिखा, "जब मैं दिन भर अपनी डिलीवरी के लिए आगे बढ़ता था, तो मुझे अक्सर मेन लिफ्ट का इस्तेमाल करने से रोक दिया जाता था. मुझे या तो सीढ़ियों से जाने के लिए कहा जाता था, कभी-कभी चौथी मंजिल तक जाने के लिए या सर्विस लिफ्ट का इस्तेमाल करने के लिए." श्री सलीम ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह का व्यवहार हाउसिंग सोसाइटियों में आम बात है, जहां अमीर और शिक्षित लोग रहते हैं, जो सोशल मीडिया पर सभी इन मुद्दों पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं.

उन्होंने बताया कि समाज लोगों को उनकी नौकरी या दिखावट के आधार पर आंकता है. "एक समाज के रूप में, हमें यह समझने की जरूरत है कि डिलीवरी अधिकारी भी बाकी सभी लोगों की तरह ही इंसान हैं. हमें किसी के चरित्र, स्थिति या मूल्य के बारे में उसकी वर्दी या दिखावट के आधार पर धारणाएं बनाना बंद कर देना चाहिए. हर कोई सम्मान का हकदार है, चाहे उसका पेशा कोई भी हो.

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