IIT से पहले कैदियों के लिए जेल थी ये बिल्डिंग, जानिए कैसे बन गया इंजीनियरिंग का बड़ा हब

क्या आप जानते हैं कि भारत के 23 आईआईटी में से एक IIT ऐसी भी है, जो जेल में शुरू की गई थी. एक समय यह डिटेंशन कैंप हुआ करता था. बाद में इसे देश का पहला आईआईटी बनने का मौका मिला और आज इंजीनियरिंग का हब बन चुका है.

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नई दिल्ली:

Jail to IIT : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में पढ़ाई करना ज्यादातर स्टूडेंट्स का सपना होता है. यहां से निकले इंजीनियर्स की डिमांड सिर्फ देश ही नहीं दुनियाभर में होती हैं. कई बड़े टेक जायंट जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा इन्हें हाथों-हाथ लेती हैं. इनका पैकेज करोड़ों में होता है. भारत में कुल 23 आईआईटी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से एक आईआईटी की बिल्डिंग पहले जेल हुआ करती थी. सुनकर हैरानी होगी लेकिन ये सच है. ये आईआईटी बिल्डिंग पहले कैदियों के लिए जेल थी, अब इंडीनियरिंग का बड़ा हब बन चुकी है. आइए जानते हैं इसकी कहानी.

जेल रह चुकी है IIT की बिल्डिंग 

IIT खड़गपुर एक जेल से निकलकर इंजीनियरिंग का हब बन चुका है. इसकी कहानी आज भी इतिहास में दर्ज है. दरअसल, आजादी से पहले हिजली (Hijli) नाम का इलाका ब्रिटिश राज के दौरान एक डिटेंशन कैंप था. यहां अंग्रेज सरकार उन स्वतंत्रता सेनानियों को कैद रखती थी, जिन्होंने भारत को आजाद करने की कसम खाई थी. साल 1930 के दशक में जब स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुआ, तो हजारों लोगों को यहां लाया गया.

कहा जाता है कि उस वक्त मिदनापुर के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर रॉबर्ट डगलस ने हिजली जेल को बेहद सख्त सुरक्षा में बनाया था. 140 यार्ड में फैले परिसर में दो मंजिला इमारत, बीच में 140 फीट ऊंचा टावर और चारों तरफ 10 फीट ऊंची दीवार थी. किसी कैदी का यहां से भाग पाना लगभग नामुमकिन था. फिर भी इतिहास के अनुसार, तीन कैदी इस जेल से फरार होने में कामयाब हुए थे.

हिजली में चलीं गोलियां, दो स्वतंत्रता सेनानी शहीद

16 सितंबर 1931 को ब्रिटिश सैनिकों ने जेल के अंदर बंद कैदियों पर गोलियां चला दीं. इस गोलीकांड में दो युवा स्वतंत्रता सेनानी तारकेश्वर सेनगुप्ता और संतोष मित्रा शहीद हो गए. इस घटना की खबर जब बाहर पहुंची तो पूरे बंगाल में गुस्से की लहर फैल गई. कैदी हिमांशु बोस ने किसी तरह दोनों शहीदों का स्केच बनाकर आनंद बाजार पत्रिका को भेजा. खबर जैसे ही पब्लिश हुई, सुभाष चंद्र बोस और जतिंदर मोहन सेनगुप्ता खुद हिजली पहुंचे. महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इस दर्दनाक घटना से आहत होकर अपनी प्रसिद्ध कविता 'प्रश्नो' लिखी, जिसमें उन्होंने इंसानियत और आज़ादी पर सवाल उठाए.

आजादी के बाद हिजली बना आईआईटी

आज़ादी के बाद लोगों ने मांग की, 'जहां देशभक्तों ने अपने प्राण दिए, वहां अब ज्ञान की ज्योति जलनी चाहिए.'सरकार ने इस सोच को साकार किया. 1950 में IIT खड़गपुर की शुरुआत हुई, शुरू में यह कोलकाता के 5, एस्पलांडे ईस्ट से चलता था. लेकिन बाद में फैसला हुआ कि इस संस्थान को शांत और बड़ी जगह चाहिए और तब ऐतिहासिक जगह यानी हिजली जेल का परिसर चुना गया. 21 अप्रैल 1956 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खुद आकर यहां IIT खड़गपुर की औपचारिक शुरुआत की. नेहरू ने उस दिन कहा था, 'यह सिर्फ एक संस्थान नहीं, यह उस देश की श्रद्धांजलि है, जिसने अपने युवाओं को सपनों के लिए लड़ते देखा.'

अब टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज 

आज IIT खड़गपुर देश ही नहीं, दुनिया के टॉप इंजीनियरिंग संस्थानों में गिना जाता है. यहां से निकलने वाले छात्रों ने गूगल, नासा, माइ्क्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों में अपना टैलेंट दिखाया है. पुराना हिजली परिसर अब 'हिजली शहीद भवन' और 'नेहरू म्यूज़ियम ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी' के नाम से जाना जाता है.

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