माता-पिता नहीं दे सकते फीस, प्राइवेट की जगह सरकारी स्कूलों में दाखिला ले रहे छात्र

कोरोना वायरस के कारण कई लोगों की नौकरी चली गई है, ऐसे में वो माता- पिता सबसे ज्यादा परेशान हैं जो प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए वह प्राइवेट स्कूल से बच्चों को निकालर सरकारी स्कूल में दाखिला करवा रहे हैं.

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माता-पिता नहीं दे सकते फीस, प्राइवेट की जगह सरकारी स्कूलों में दाखिला ले रहे छात्र
चेन्नई:

कोरोना वायरस के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति पर काफी असर पड़ा है, जिस कारण बड़ी संख्या में माता-पिता अपने बच्चों को तमिलनाडु के प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर रहे हैं. कोरोना वायरस की वजह से नौकरी छूटने और सैलरी न आने पर माता- पिता बच्चों की फीस का भुगतान करने में असमर्थ हैं.

आपको बता दें, चेन्नई में, तिरुवन्मियूर हायर सेकेंडरी स्कूल, चेन्नई कॉरपोरेशन द्वारा संचालित एक सरकारी स्कूल में बानू नाम की महिला अपने तीन बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में शिफ्ट करने के लिए कागजात सौंपने में व्यस्त हैं. उनके बच्चे कक्षा 11वीं, 9वीं और 6 के छात्र हैं.

बता दें, महिला ने एक अस्पताल में अपनी नौकरी खो दी थी, ऐसे में वह प्राइवेट स्कूल को 1.5 लाख रुपये दी जाने वाली फीस का भुगतान नहीं कर सकती थी. जबकि सरकारी स्कूल में फीस पचास रुपये सालाना है.

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NDTV से खास बातचीत करते हुए उन्होंने बताया,  "पिछले तीन महीनों में मैं अपने बच्चों को खाने किए और किराए के भुगतान करने के लिए एक कुक के रूप में काम कर रही हूं. आज मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं बच्चों की खातिर कुछ भी काम कर सकती हूं. वह कहती हैं कि उन्होंने  तिरुवन्मियूर हायर सेकेंडरी स्कूल, को इसके शिक्षण की गुणवत्ता और अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के लिए चुना है.

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वहीं दिव्या नाम की महिला एक दर्जी, जो अपने घर से सिलाई करती है, काफी राहत महसूस कर रही है. जिस प्राइवेट स्कूल में उसका बेटा कक्षा 5वीं तक पढ़ता था. अब स्कूल का कहना है कि वह बच्चे का ट्रांसफर सर्टिफिकेट तब तक नहीं देगा, जब तक उनकी पूरी फीस नहीं भर दी जाती.  वहीं दिव्या अभी फीस देने में असमर्थ है.

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हालांकि, राज्य सरकार की यह घोषणा कि नॉर्मल डॉक्यूमेंट्स के बिना भी बच्चों को दाखिला दिया जाएगा, ये खबर दिव्या के लिए राहत देने वाली है. दिव्या ने बताया कि वह बिना ट्रांसफर सर्टिफिकेट के सरकारी स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवाने गई, क्योंकि मुख्यमंत्री ने कहा था कि बिना ट्रांसफर सर्टिफिकेट के भी सरकारी स्कूलों में दाखिला दिया जाएगा. वहीं यहां पहले से ही मेरे बेटे को अपनी किताबें मुफ्त मिल चुकी हैं. लगभग 16,000 छात्र चेन्नई निगम के स्कूलों में ट्रांसफर हो गए हैं. यह पिछले साल के मुकाबले 8 फीसदी ज्यादा है.

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अधिकारियों का कहना है कि जब पिछले साल महामारी आई थी, तो नागरिक निकाय (civic body) ने कक्षा 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए टैब की व्यवस्था की थी ताकि वे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले सकें.

स्कूल की प्रिंसिपल  शिवगामी ने कहा, "पिछले साल 250 छात्रों के बीच कक्षा 10वीं में हमारे 99.5 प्रतिशत परिणाम थे. कक्षा 10वीं में भी हमारी समान उच्च उपलब्धि थी. हमारे पास अच्छा ऑनलाइन शिक्षण भी है. हम बच्चों को को- करिकुलर एक्टिविटिज में भी प्रोत्साहित करते हैं.

चेन्नई कॉरपोरेशन के अधिकारियों के तहत 280 में से 28 स्कूलों का कहना है कि स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत बुनियादी ढांचे और स्मार्ट कक्षाओं सहित शिक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए भी पहचान की गई है.

डी स्नेहा, डिप्टी कमीश्नर, शिक्षा, चेन्नई निगम ने NDTV से कहा, "हमारे पास जिस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षक गुणवत्ता है, हम उनके फैसले के साथ न्याय करने में सक्षम होंगे." सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए मेडिकल प्रवेश में हाल ही में 7.5% कोटा भी बच्चों को सरकारी स्कूलों में आकर्षित करता है.

ऐसा पहली बार हो रहा है कि, मध्यम वर्ग सरकारी स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं, जो आर्थिक रूप से महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं, सरकार पर सरकारी स्कूलों में मानकों में सुधार करने के लिए दबाव बढ़ रहा है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ताकि बदलाव से बच्चों के शैक्षणिक मानकों में गिरावट न हो.

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