उर्दू पत्रकारिता के 200 साल पूरे होने पर लखनऊ में आयोजित हुई सेमिनार

सेमिनार ने वक्‍ताओं ने कहा कि जंग ए आज़ादी में उर्दू सहाफ़त (पत्रकारिता)  का अहम योगदान रहा है,

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उर्दू पत्रकारिता के दो सौ साल पूरे  होने पर इस्लामिक सेंटर आफ इंडिया में संगोष्‍ठी आयोजित हुई
लखनऊ:

उर्दू सहाफ़त (पत्रकारिता) के दो सौ साल पूरे  होने पर इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया ईदगाह लखनऊ में  AMU ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन एवं सिद्क फाउंडेशन की ओर से "उर्दू पत्रकारिता और मौलाना अब्दुल माजिद दरयाबादी (अलीग) " विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई.सेमिनार की अध्यक्षता इमाम ईदगाह व इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने की. उन्होंने मौलाना दरियाबादी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मौलाना दरियाबादी का तहरीके खिलाफत के जमाने में मौलाना अब्दुलबारी फरंगी महली "उलमा-ए-फरंगी महल" से गहरा ताल्लुक था और उनके बीच समसामयिक विषयों पे विचारों का आदान प्रदान होता था. उन्होंने युवाओं विशेष रूप से सांप्रदायिक सौहार्द एवं मानवता के प्रति समर्पित समस्त वर्गों का आव्हान किया कि वे एवं विशेष कर स्कूली छात्रों  "तफसीरे माजिदी (अंग्रेजी)  जरूर पढ़े एवं यह भी कहा कि "उर्दू" को लेकर जो गलतफहमियां फैलाई जाती रही हैं, कि उर्दू एक विशेष समुदाय से पहचानी बताई जाती है, जो कि बेहद अफसोसनाक है. 

AMU ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन  के सेक्रेटरी सैयद मोहम्मद शोएब ने बताया कि उर्दू सहाफत के 200 साल पूरे होने पर जो जश्न मनाया जा रहा है,इसमें खास बात यह है कि आज से ठीक 200 साल पहले, मार्च 1822 में हरिहर दत्त और सदासुखलाल ने कलकत्ता ( बंगाल) से उर्दू का पहला अखबार "जाम ए जहांनुमा" निकाला. इसके बाद दूसरा अखबार भी एक गैर मुस्लिम ने ही निकाला और लखनऊ के मुंशी नवल किशोर का नाम तो उर्दू के उत्थान के लिए बहुत गर्व से लिया जाता है. इससे यह भी साबित होता है कि उर्दू किसी खास मजहब या जाति या किसी खास इलाके की जबान नहीं है बल्कि ये सारे धर्मों के मानने वालों और खालिस हिन्दुस्तानी जबान है. उन्होंने कहा कि जंग ए आज़ादी में उर्दू सहाफ़त (पत्रकारिता)  का सबसे अहम किरदार रहा है, इसके साथ ही उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खां का उर्दू पत्रकारिता के अभूतपूर्व योगदान पर  प्रकाश डाला. 

सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में डा. मसूदुल हसन उस्मानीने मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी की पत्रकारिता का जिक्र करते हुए कहा कि वे एक "साहिबे नजर पत्रकार" थे. उन्होंने पत्रकारों को मशविरा दिया कि वो मौलाना दरियाबादी की तरह "ख़बर और नज़र" के पैरोकार बनें. अलीगढ़ से आए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता AMU पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर  शाफे किदवाई ने मौलाना दरियाबादी  की गहन और क्रन्तिकारी पत्रकारिता  की ख़ासियतों पर रोशनी डाली. उन्होंने मौलाना के शुरुआती  "कालम"  सच्ची बातें ‘और उनकी मौजूदा उपलब्धियों के बारे में बताया.   मौलाना नईमुल रहमान सिद्दीकी ने "मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी" की लिखीं बेशकीमती पुस्तकों, पत्रों इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी दी. वरिष्ठ इतिहासकार एवं लेखक रवि भट्ट ने उर्दू साहित्य और भाषा के हवाले से कहा कि किसी भी भाषा को किसी धर्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए उन्‍होंने कहा, "मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी" जैसी शख्सियत से उनके जीवन काल में न मिल पाने की पीड़ा उनको आज भी बहुत सताती है. सेमिनार का संचालन " अल्लामा इक़बाल " के कलाम के साथ "आतिफ़ हनीफ़" ने किया. कार्यक्रम में मौलाना दरियाबादी के खानदान के लोग, लखनऊ शहर की जानी-मानी हस्ती अतहर नबी, अलीगढ़  से धर्मशास्र के शिक्षक डॉ रेहान, प्रो अब्बास मेहदी, अब्दुल कुद्दुस हाशमी ,अफ़ज़ल सिद्दीकी ,मलिकज़ादा परवेज़ , वरिष्ठ पत्रकार ज़फरुल हसन, वरिष्ठ पत्रकार मसऊद हसन, आरिफ़ नगरामी,सिराजुद्दीन साहब, एवं कई नामचीन अदबी हस्तियां शामिल हुईं. 

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