Independence Day 2021 Nehru's historic speech: 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था. इस दिन काफी कुछ ऐसा हुआ था, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इन्हीं मे से एक है भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय लॉज(मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से दिया था.
भारत में आज भी कम ही लोग उनके इस भाषण के बारे में जानते हैं. सबसे पहले आपको बता दें, उनके इस भाषण को "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" (‘Tryst with destiny') के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं उनके इस भाषण के बारे में.
लंबे संघर्ष के बाद भारत को ब्रिटिश हुकुमत से आजादी मिली थी. ऐसे में नेहरू का ये भाषण सभी देश वासियों के लिए जरूरी था. आपको बता दें, ये किस्सा उस समय का है जब नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं बने थे.
पंडित नेहरू का नियति से साक्षात्कार भाषण...
बहुत साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब उस वादे का पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक पूरा करने का वक्त आ गया है. आज जैसे ही घड़ी की सुईयां मध्यरात्रि की घोषणा करेंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा.
यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्मा नई आवाज पाती है. यकीकन इस विशिष्ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें.
इतिहास की शुरुआत से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं. अपने सौभाग्य और दुर्भाग्य के दिनों में उसने इस खोज की दृष्टि को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उन आदर्शों को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई. हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं. आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है.
आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है. इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है?
स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं. वह दायित्व संप्रभु भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस सभा में निहित है. स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे दिल उनकी दुखद स्मृतियों से भारी हैं. कुछ पीड़ाएं अभी भी मौजूद हैं. बावजूद इसके स्याह अतीत अब बीत चुका है और सुनहरा भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है.
अब हमारा भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं जिनकी हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं ताकि हम उन कामों को पूरा कर सकें. भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीडि़त जनों की सेवा है. इसका आशय गरीबी, अज्ञानता, बीमारियों और अवसर की असमानता के खात्मे से है.
हमारी पीढ़ी के सबसे महानतम व्यक्ति की आकांक्षा हर व्यक्ति के आंख के हर आंसू को पोछने की रही है. ऐसा करना हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा.
इसलिए हमें सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कठोर से कठोरतम परिश्रम करना है. ये सपने भले ही भारत के हैं लेकिन ये स्वप्न पूरी दुनिया के भी हैं क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुंथे हुए हैं कि कोई भी एकदम अलग होकर रहने की कल्पना नहीं कर सकता...जय हिंद.