जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे....पढ़िए फेमस कवि विनोद कुमार शुक्ल की दिल छू लेने वाली कविताएं

Vinod Kumar Shukla Poem: फेमस लेखक, कवि विनोद कुमार शुक्ल की 'जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे', 'हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था' काफी फेमस है. पढ़ें उनकी दिल छू लेने वाली कविताएं.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
नई दिल्ली:

Vinod Kumar Shukla Poem in Hindi: फेमस लेखक, कवि विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. अपने हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें इस सम्मान के लिए चुना गया. विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ से तालुक रखते हैं. वह हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है.. लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल (88 वर्ष) की पहली कविता 1971 में ‘लगभग जयहिंद' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी. उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज', ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी' और ‘खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं. उन्होंने कविताएं लोगों को काफी पसंद आती है. पढ़िए उनकी कुछ दिल छू लेने वाली कविताएं.

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने

उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर

नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा

कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब

असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर

खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।

जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं

उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा—

इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था

हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया

मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ

मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे

साथ चलने को जानते थे।

आँख बंद कर लेने से

आँख बंद कर लेने से
अंधे की दृष्टि नहीं पाई जा सकती

जिसके टटोलने की दूरी पर है संपूर्ण
जैसे दृष्टि की दूरी पर।

अँधेरे में बड़े सवेरे एक खग्रास सूर्य उदय होता है
और अँधेरे में एक गहरा अँधेरे में एक गहरा अँधेरा फैल जाता है

चाँदनी अधिक काले धब्बे होंगे
चंद्रमा और तारों के।

टटोलकर ही जाना जा सकता है क्षितिज को
दृष्टि के भ्रम को

कि वह किस आले में रखा है
यदि वह रखा हुआ है।

कौन से अँधेरे सींके में
टँगा हुआ रखा है

कौन से नक्षत्र का अँधेरा।
आँख मूँदकर देखना

अंधे की तरह देखना नहीं है।
पेड़ की छाया में, व्यस्त सड़क के किनारे

तरह-तरह की आवाज़ों के बीच
कुर्सी बुनता हुआ एक अंधा

संसार से सबसे अधिक प्रेम करता है
वह कुछ संसार स्पर्श करता है और

बहुत संसार स्पर्श करना चाहता है।

ये भी पढ़ें-प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा, जानिए उनके बारे में

ये भी पढ़ें-Do you Know: क्या आप जानते हैं संस्कृत से बने हैं ये अंग्रेजी के शब्द, विदेशों में भी बोलते हैं लोग
 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Pahalgam Terror Attack: भारत की सैन्य क्षमता के आगे कहां ठहरता है पाकिस्तान? | NDTV Explainer
Topics mentioned in this article