Dark Oxygen: गहरे समुद्र में हुई एक खोज जिसने वैज्ञानिक बहस को दिया जन्म 

कुछ वैज्ञानिकों को ऐसा लगता है, लेकिन अन्य लोगों ने इस दावे को चुनौती दी है कि तथाकथित "डार्क ऑक्सीजन" समुद्र तल के प्रकाशहीन रसातल में बनाई जा रही है. इस खोज का विवरण पिछले जुलाई में नेचर जियोसाइंस पत्रिका में दिया गया था.

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Dark Oxygen: गहरे समुद्र में हुई एक खोज जिसने वैज्ञानिक बहस को दिया जन्म 
नई दिल्ली:

Dark Oxygen: समुद्र की सबसे गहरी और अंधेरी गहराइयों में मौजूद गांठदार धात्विक चट्टानों के बारे में कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ये सूरज की रोशनी के अभाव में ऑक्सीजन पैदा कर सकती हैं. इसे "डार्क ऑक्सीजन" नाम दिया गया है. हालांकि, कई अन्य वैज्ञानिक इस दावे को चुनौती दे रहे हैं कि समुद्र तल के प्रकाशहीन गड्ढों में ऐसा कुछ हो रहा है.

खोज ने वैज्ञानिकों में मचाई हलचल

पिछले साल जुलाई में नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित इस खोज ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं पर सवाल उठाए हैं. इसने वैज्ञानिक समुदाय में तीखी बहस छेड़ दी है. शोधकर्ताओं का कहना है कि आलू के आकार की ये धात्विक गांठें (पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स) इतना विद्युत प्रवाह पैदा कर सकती हैं कि समुद्री पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित कर दें. इसे इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया कहा जाता है.

जीवन की उत्पत्ति पर नया सवाल

इस खोज ने उस पुरानी मान्यता को चुनौती दी है कि करीब 2.7 अरब साल पहले प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) के जरिए ऑक्सीजन बनने से जीवन संभव हुआ था, जिसमें सूरज की रोशनी जरूरी होती है. स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस ने इसे "समुद्र की गहराइयों में खोज जो जीवन की उत्पत्ति पर सवाल उठाती है" करार दिया.

नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा

पर्यावरणविदों का कहना है कि डार्क ऑक्सीजन की मौजूदगी यह दिखाती है कि इन चरम गहराइयों में जीवन के बारे में हम कितना कम जानते हैं. उनका तर्क है कि गहरे समुद्र में खनन से पारिस्थितिकी को अस्वीकार्य जोखिम हो सकता है. ग्रीनपीस ने कहा, "यह अद्भुत खोज गहरे समुद्र में खनन को रोकने की जरूरत को और मजबूत करती है, जो नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है."

खनन कंपनियों के लिए अहम

यह खोज क्लैरियन-क्लिपरटन जोन में हुई, जो प्रशांत महासागर का एक विशाल क्षेत्र है और खनन कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है. समुद्र तल पर चार किलोमीटर नीचे बिखरी ये गांठें मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट जैसे धातुओं से भरी हैं, जो इलेक्ट्रिक कार बैटरी और कम कार्बन तकनीकों में इस्तेमाल होते हैं. इस शोध को आंशिक रूप से कनाडा की एक खनन कंपनी, द मेटल्स कंपनी ने फंड किया था, जो इसके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना चाहती थी.

वैज्ञानिक संदेह और आलोचना

हालांकि, इस खोज पर वैज्ञानिक समुदाय में एकराय नहीं है. कुछ ने इसे खारिज किया तो कुछ ने संदेह जताया. जुलाई के बाद से पांच शोध पत्र इस निष्कर्ष को चुनौती देते हुए प्रकाशन के लिए भेजे गए हैं. जर्मनी के GEOMAR हेल्महोल्ट्ज सेंटर के जैव-रसायनशास्त्री मथायस हेकल ने कहा, "शोध में स्पष्ट सबूतों की कमी है. अब वैज्ञानिक समुदाय को इसे साबित या खंडन करने के लिए प्रयोग करने होंगे."

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फ्रांस के समुद्री विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता ओलिवियर रूक्सेल ने कहा, "इन नतीजों पर कोई सहमति नहीं है. मापने वाले उपकरणों में फंसी हवा के बुलबुले भी ऑक्सीजन का कारण हो सकते हैं." उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि लाखों साल पुरानी ये गांठें आज भी विद्युत प्रवाह कैसे बना सकती हैं.

आगे की राह

शोध के प्रमुख लेखक एंड्रयू स्वीटमैन ने कहा कि वह औपचारिक जवाब तैयार कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "वैज्ञानिक लेखों में इस तरह की बहस सामान्य है और यह विषय को आगे बढ़ाती है." इस बीच, खनन कंपनी द मेटल्स कंपनी ने इस अध्ययन को "गलत तकनीक और खराब विज्ञान" का नतीजा बताया है. यह खोज न सिर्फ विज्ञान के लिए बल्कि पर्यावरण और उद्योग के लिए भी बड़े सवाल खड़े कर रही है.

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