पायल कपाड़िया की फिल्म 'ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट' ने कान फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री अवॉर्ड जीता. यह पाल्मे डी'ओर के बाद फिल्म फेस्टिवल का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है.यह 30 साल में किसी भारतीय महिला निर्देशक द्वारा मुख्य प्रतियोगिता में प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म है. मलयालम और हिंदी भाषा की इस फिल्म की कहानी भी पायल कपाड़िया ने लिखी है. ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट नर्स प्रभा की कहानी है, जिसे लंबे समय से अलग रह रहे अपने पति से एक अप्रत्याशित तोहफा मिलता है, जिससे उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. इसमें उसकी साथी नर्स अनु की भी कहानी जुड़ी है.
पायल कपाड़िया ने रचा इतिहास
प्रतिष्ठित पाल्मे डि'ओर पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली आखिरी भारतीय फिल्म 1983 में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मृणाल सेन की खारिज थी. इससे पहले, एम.एस. सथ्यू की गर्म हवा (1974), सत्यजीत रे की परश पत्थर (1958), राज कपूर की आवारा (1953), वी शांताराम की अमर भूपाली (1952) और चेतन आनंद की नीचा नगर (1946) जैसी फिल्में कान्स प्रतियोगिता खंड के लिए चुनी गयी थीं. 'नीचा नगर' 1946 में कान्स में शीर्ष सम्मान जीतने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म है. उस समय, इस पुरस्कार को ग्रां प्री डू फेस्टिवल इंटरनेशनल डू फिल्म के नाम से जाना जाता था.
कौन है पायल कपाड़िया
पायल कपाड़िया की उम्र 38 वर्ष है. उनकी मां नलिनी मालिनी भी एक आर्टिस्ट रही हैं. पालय ने मुंबई के सेंट जेविर्यस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में बैचलर डिग्री कर रखी है. उन्होंने फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से कोर्स कर रखा है. यही नहीं, कान फिल्म फेस्टिवल में 2021 में ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग को बेस्ट डॉक्युमेंट्री का गोल्डन आई अवॉर्ड मिला था. 2017 में उनकी फिल्म आफ्टरनून क्लाउड्स भारत की तरफ से कान में पहुंची एकमात्र फिल्म थी. लगातार कान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाली पायल कपाड़िया ने अब इतिहास रच दिया है.