बॉलीवुड में जब भी दर्द भरे गानों की बात होती है तो मोहम्मद रफी साहब का नाम सबसे पहले आता है. रफी साहब की आवाज में जो दर्द और उनके नगमों में जो रूहानियत थी वो किसी के भी दिल को छू सकती है. रफी साहब ने अपने दौर में एक से बढ़कर एक नगमें हैं जिन्हें आज भी लोग गुनगुनाते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि गाना बनने से पहले ही सिंगर का नाम ज़हन में घूमने लग जाता है और फिर ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या कोई और आवाज इस गाने के साथ इंसाफ कर पाएगी भी या नहीं.ऐसा ही एक मुश्किल वक्त उस समय आ गया था जब एक गाने को रफी से गवाने को लेकर एक फिल्म के हीरो और म्यूज़िक डायरेक्टर के बीच ठन गई थी. चलिए जानते हैं ये रोचक किस्सा आखिर क्या था.
रफी साहब के नाम पर हीरो और म्यूज़िक डायरेक्टर में हो गई बहस
दरअसल यहां बात हो रही है रफी साहब के गाए जबरदस्त गाने 'पत्थर के सनम' की... जब ये फिल्म बन रही थी तो इस फिल्म के टाइटल सॉन्ग को लेकर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल सिंगर की तलाश कर रहे थे. मजरूह सुल्तानपुरी साहब का लिखा ये गाना इतना इमोशनल था कि इसके लिए दर्द भरी आवाज की जरूरत थी. ऐसे में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के जहन में सबसे पहले रफी साहब का नाम आया. उन्होंने कहा कि इस गाने के साथ असली न्याय रफी साहब की कर सकते हैं. ऐसे में उन्होंने प्रोड्यूसर से कहा कि रफी साहब से ये गाना करवाना चाहिए.
रिलीज होते ही हिट हो गया रफी साहब का गाया गाना
दूसरी तरफ फिल्म के हीरो मनोज कुमार के अधिकांश गाने मुकेश साहब ने गाए थे. मनोज कुमार का कहना था कि ये गाना मुकेश गा सकेंगे क्योंकि उनके ऊपर मुकेश की आवाज जंचती है और उनके अधिकतर गाने उन्होंने ही गाए हैं. ऐसे में एक गाने पर दो सिंगर की बात उठी तो मनोज कुमार और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल में ठन गई. दोनों ही पक्ष अपनी अपनी बात पर अड़े थे. ऐसे में बात फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर तक पहुंच गई. इन दोनों ने ही संगीत के मामले में दखल देने से ये कहकर मना कर दिया कि इस मामले में वो कुछ नहीं कर सकते. आखिरकार मनोज कुमार को झुकना पड़ा और ये गाना मोहम्मद रफी की आवाज में रिकॉर्ड किया गया. इस गाने के रिलीज होते ही तलहलका मच गया और फिल्म हिट हो गई. तब मनोज कुमार को कहना पड़ा कि वाकई रफी साहब के अलावा ये गाना कोई नहीं गा सकता था.