हुमा कुरैशी और मसाबा के खास गाने, क्या बदल रही है फिल्मकारों की सोच?

हाल ही में फिल्म ‘मालिक’ के एक गाने में हुमा कुरैशी और उससे कुछ वक्त पहले ‘केसरी 2’ में मसाबा गुप्ता को खास गाने में डांस करते देखा गया.

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हुमा कुरैशी और मसाबा के खास गाने, क्या बदल रही है फिल्मकारों की सोच
नई दिल्ली:

हाल ही में फिल्म ‘मालिक' के एक गाने में हुमा कुरैशी और उससे कुछ वक्त पहले ‘केसरी 2' में मसाबा गुप्ता को खास गाने में डांस करते देखा गया. दोनों ने बहुत अच्छा डांस किया. ये गाने बता रहे हैं कि ऐसे खास गानों के सफर में अब एक नया मोड़ आ गया है, जबकि इनका इतिहास काफी पुराना है.

आइटम नंबरों का चलन हिंदी फिल्मों में काफी पुराना है: 
50 के दशक की फिल्मों में भी ऐसे गाने होते थे. उस समय कुकू नाम की डांसर बहुत मशहूर थीं. उन्होंने करीब 17 फिल्मों में खास डांस किए. इसके बाद भी ये सिलसिला चलता रहा. 50 के दशक से लेकर 2000 तक हेलेन, बिंदु, अरुणा ईरानी, पदमा खन्ना, लक्ष्मी छाया, डिस्को शांति, कल्पना अय्यर, सिल्क स्मिता जैसी कई डांसर्स अपने आइटम नंबर्स के लिए जानी गईं.


2000 के बाद इसमें बदलाव आने लगा: 
अब फिल्मों में हीरोइनें ही इन गानों में नजर आने लगीं. जैसे, कैटरीना कैफ ‘शीला की जवानी' और ‘चिकनी चमेली' में दिखीं. प्रियंका चोपड़ा ‘बबली बदमाश' और ‘राम चाहे लीला चाहे' में नजर आईं. ऐश्वर्या राय ‘इश्क कमीना' और ‘कजरारे' में डांस करती दिखीं. हालांकि नोरा फतेही जैसी जबरदस्त डांसर भी बॉलीवुड में हैं, लेकिन डायरेक्टर अब भी बड़ी हीरोइनें को ज्यादा तरजीह देते हैं. हाल ही में तमन्ना भाटिया भी ऐसे गानों के लिए पहली पसंद बन गई हैं. ‘स्त्री 2' में उनका गाना जबरदस्त हिट रहा.

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फिल्मकारों की सोच में बदलाव:
पहले ऐसे गानों पर ये आरोप लगता था कि ये महिलाओं को सिर्फ चीज की तरह दिखाते हैं. लेकिन अब इसमें बदलाव दिख रहा है. अब कोशिश हो रही है कि महिला सुंदरता और उनके आकर्षण को महिलाओं को मजबूत और आज़ाद दिखाने के तौर पर पेश किया जाए. हुमा कुरैशी और मसाबा गुप्ता जैसी एक्ट्रेस को चुनना, जो सिर्फ पारंपरिक खूबसूरती के लिए नहीं बल्कि अपनी अलग पहचान और टैलेंट के लिए जानी जाती हैं, ये दिखाता है कि बॉलीवुड अब ज्यादा खुले दिमाग से काम कर रहा है.

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इन खास गानों के लिए हीरोइनों के पुराने पैमानों को छोड़कर डायरेक्टर अब ऐसी सोच ला रहे हैं, जो महिलाओं के प्रति बनी धारणाओं को तोड़ने की कोशिश है, चाहे वो रंग-रूप हो या कद-काठी. आज के फिल्मकार महिलाओं को सिर्फ देखने की चीज बनाने के बजाय उनके महिला होने का जश्न मना रहे हैं. यही बात हुमा और मसाबा के हाल के गानों से भी साबित होती है. बदलते वक्त के साथ इन खास गानों का रूप भी बदल गया है और आगे भी फिल्मवाले अपनी जरूरत और समय के हिसाब से इन्हें बदलते रहेंगे.

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