दिलीप कुमार के साथ कुछ इस तरह ईद मनाती थीं सायरा बानो, बोलीं- प्यार पाने और देने से ज्यादा कोई धन नहीं

देशभर में ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. फिल्मी सितारे भी इस खास दिन को अपने अंदाज में मना कर रहे हैं. सायरा बानो ईद को पुरानी यादों के साथ मना रही हैं.

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दिलीप कुमार के साथ कुछ इस तरह ईद मनाती थीं सायरा बानो
नई दिल्ली:

देशभर में ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. फिल्मी सितारे भी इस खास दिन को अपने अंदाज में मना कर रहे हैं. सायरा बानो ईद को पुरानी यादों के साथ मना रही हैं. दिग्गज एक्ट्रेस ने सोमवार को अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने दिवंगत पति दिलीप कुमार का एक थ्रोबैक वीडियो शेयर किया. इस वीडियो में दिवंगत एक्टर को फिल्म जगत के अपने दोस्तों और परिवार के साथ अलग-अलग मौकों पर ईद मनाते हुए दिखाया गया है. उन्होंने ईद के त्यौहार के साथ अपने सफर के बारे में एक निजी नोट भी शेयर किया और बताया कि उम्र के साथ इसका मतलब उनके लिए कैसे बदल गया.


सायरा बानो ने वीडियो के कैप्शन में लिखा, "जब मैं छोटी थी और रमजान का पवित्र महीना आता था, तो हमारा घर सिर्फ रोशनी की झिलमिलाहट से नहीं, बल्कि दुआओं से जगमगाता था. हवा में कुछ खास था, एक शांति जो उपवास, प्रार्थना और चिंतन से आती थी. फिर भी, दिलीप साहब से मेरी शादी के बाद ही ईद ने अपना जीवन शुरू किया. हमारा घर जो सिर्फ हमारा था; एक ऐसी जगह बन गया जहां प्यार, सद्भावना और बंधन रहते थे. सुबह होते ही घर को बड़े प्यार से भेजे गए फूलों से सजाया जाता था".

अभिनेत्री ने बताया कि जैसे ही भोर की पहली किरण आसमान में फैलती, संगीतकारों का एक समूह उनके दरवाजे पर इकट्ठा होता, उनके ढोल और बिगुल की धुन को मुंबई के पाली हिल इलाके में शायद ही कोई अनदेखा कर पाता. सायरा बानो ने आगे बताया, "हमारा घर बिना दीवारों वाला था, ऐसा घर जहां कोई दरवाजा बंद नहीं रहता था. फिल्म बिरादरी के दोस्त, फैंस और अजनबी एक के बाद एक आते थे. साहब के लिए दयालु लोगों की संगति से बढ़कर कोई खुशी नहीं थी, प्यार पाने और देने से ज्यादा कोई धन नहीं था. उनका मानना था कि एक आदमी की कीमत उसकी उपलब्धियों में नहीं बल्कि उसके दिलों में होती है. और उन्होंने ऐसा सहजता से किया. किसी भी चीज़ से ज़्यादा, साहब मानवता में विश्वास करते थे. क्योंकि यह कुछ मूर्त है, जिसे छोटे-छोटे इशारों में जिया और महसूस किया जा सकता है." अभिनेत्री ने दिवंगत अभिनेता को याद करते हुए कहा कि जिस तरह से एक इंसान दूसरे के जीवन को प्रभावित कर सकता है, वह व्याख्या से परे है, इसकी शक्ति लगभग दूसरी दुनिया की है. और वह उस सिद्धांत के अनुसार जीते थे.

अपनी पोस्ट के आखिरी में सायरा बानो ने लिखा, "साहब के अंदर इतनी दुर्लभ सहानुभूति थी कि उसमें मतभेदों को मिटाने, खाई को पाटने और उन लोगों को एकजुट करने की शक्ति थी जिन्हें दुनिया ने अलग-थलग समझा था. सिर्फ़ मैं ही नहीं, बल्कि कई अन्य लोग भी उनकी दया होने की शांत गंभीरता, किसी को अच्छाई में विश्वास दिलाने की उनकी क्षमता से आकर्षित हुए. और इसलिए, हमारे घर में ईद हमेशा आत्माओं का जमावड़ा, एकता का उत्सव, समय का एक ऐसा क्षण होता था जब दुनिया, थोड़े समय के लिए और अद्भुत समय के लिए, वैसी ही लगती थी जैसी उसे होनी चाहिए", उन्होंने आगे कहा.
 

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