आप जानते हैं, मेरे लिए उनका असर उनकी फिल्मों के ज़रिए रहा है, उनके काम के जरिए, उन कहानियों के ज़रिए जो मेरे परिवार के लोग राहुल अंकल, मेरे पिता, मेरी दादी मुझे सुनाया करते थे. मुझे एक वाक़या याद है, जब ‘संगम' की संगीत रचना चल रही थी. राज कपूर साहब चाहते थे कि वैजयंती माला जी ‘राधा' का किरदार निभाए, लेकिन उस समय वे किसी वजह से मान नहीं रही थीं. तब के ज़माने में न फोन कॉल्स थे, न ईमेल बस टेलीग्राम हुआ करते थे.
राज कपूर साहब ने गुस्से में वैजयंती माला जी को एक टेलीग्राम भेजा, जिसमें लिखा था, ‘बोल राधा बोल, संगम होगा के नहीं?' वैजयंती माला जी ने जवाब में लिखा, ‘होगा, होगा, होगा.' और वहीं से उस मशहूर गीत की लाइन बनी, ‘बोल राधा बोल, संगम होगा के नहीं.'
रणबीर ने आगे बोलते हुए इस किस्से के पीछे की मंशा बताते हुए साफ किया कि उस दौर के कलाकार रचनात्मकता को बहुत सहजता से लेते थे. वे खुद को बहुत गंभीर या सीमाओं में नहीं बांधते थे. उनके लिए सिनेमा मनोरंजन था, भावनाओं की अभिव्यक्ति था, और साथ ही साहित्य व संस्कृति का उत्सव भी. यही समानता राज कपूर और वैजयंती माला जैसे कलाकारों के काम में झलकती है. बातचीत के अंत में गुरु दत्त और राज कपूर के नाम से व्हिस्टलिंग वुड में स्कॉलरशिप का भी ऐलान किया गया जो यहां दाखिला लेने वाले दो भाग्यशाली छात्रों को दी जाएगी .