मैं मुंबई से अपने शहर बुलंदशहर गया हुआ था और इत्तेफाक से उस वक्त वहां “नुमाइश” लगी हुई थी. नुमाइश मतलब घूमता-फिरता मेला, जो पूरे साल देश के अलग-अलग शहरों में लगता है. मेरठ में इसे नौचंदी के नाम से जानते हैं, जबकि अलीगढ़ और बुलंदशहर में इसे नुमाइश ही कहते हैं. बुलंदशहर में यह मेला फरवरी और मार्च के महीने में भरता है, जिसमें देश भर के अलग-अलग राज्यों से दुकानदार अपनी खास चीजें बेचने आते हैं. लोग भी दूर-दूर से आकर इन्हें खरीदते हैं. नुमाइश की यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, इसका इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है.
एक महीने तक चलने वाली इस नुमाइश में हर तरह की दुकानों के अलावा सर्कस, झूले, किसानों के लिए प्रदर्शनी और एक बड़ा पंडाल भी होता है जहां पूरे महीने रंगारंग कार्यक्रम होते हैं, जैसे कवि सम्मेलन, शास्त्रीय संगीत, नृत्य और बॉलीवुड म्यूजिकल नाइट. 2008 में भी ऐसी ही एक म्यूजिकल नाइट रखी गई थी, जिसमें बॉलीवुड सिंगर शान, अभिनेत्री प्रीति झिंगियानी और ‘कांटा लगा' गर्ल शेफाली जरीवाला आने वाली थीं. पूरे शहर में चर्चा थी कि शेफाली आएंगी, और उन्हें देखने के लिए पंडाल पूरा भर जाने वाला था. लोग खास तौर पर ‘कांटा लगा गर्ल' को देखने की तैयारी कर रहे थे.
बुलंदशहर जैसे छोटे शहर में तो बड़े फिल्मी सितारे तो छोड़िए, टीवी कलाकार भी आ जाएं तो पूरा शहर काम छोड़कर उन्हें देखने उमड़ पड़ता है. दर्शक शो देखने के लिए तैयार थे, कलाकार भी परफॉर्म करने के लिए. लेकिन तभी चुनावों का ऐलान हो गया. शो के आयोजकों में से दो लोग एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े थे, इसी वजह से शो कैंसिल करने की बात उठी और आखिरकार उसे रद्द कर दिया गया.
पर दर्शकों की उत्सुकता इतनी थी कि उन्होंने शेफाली के होटल के सामने ही भीड़ लगा दी. छोटा शहर था और अच्छा होटल भी सिर्फ एक ही था. इत्तेफाक से इस इवेंट को मेरा ही एक दोस्त मैनेज कर रहा था और उसी की वजह से मैं भी शहर आया था ताकि उसे कुछ मदद कर सकूं और साथ ही नुमाइश और शो भी देख सकूं.
रात हो चुकी थी और शो रद्द होने का ऐलान हो गया था. हज़ारों लोग होटल के बाहर जमा हो गए थे और गेट घेर लिया था. मेरे दोस्त ने मुझे फोन करके बताया कि भीड़ बहुत बढ़ गई है और अब सवाल ये था कि शेफाली को होटल से कैसे निकाला जाए.
तभी मुझे एक आइडिया आया. मैं अपनी कार लेकर होटल पहुंचा. बहुत मुश्किल से गार्ड्स ने मुझे अंदर आने दिया. अंदर जाकर देखा तो शेफाली बहुत घबराई हुई थीं. भीड़ गेट तोड़ने को तैयार थी. मुझे लगा अगर वो अपनी गाड़ी में जाएंगी तो भीड़ पहचान लेगी और पीछा करेगी, क्योंकि सबको उनकी लग्जरी कार का अंदाजा था.
तब मैंने अपनी कार में ही शेफाली को बैठाया. साथ में मेरा दोस्त और शेफाली की टीम के दो लोग भी मेरी गाड़ी में बैठे. शेफाली को दोनों तरफ से घेर लिया और उनका चेहरा नीचे झुका दिया ताकि किसी को पता न चले कि वो गाड़ी में हैं.
शेफाली डरी हुई थीं. लोग कार के आगे-किनारे झांककर देखने की कोशिश कर रहे थे. बड़ी मुश्किल से मैंने कार को भीड़ के बीच से निकाला. गार्ड्स और भीड़ में धक्का-मुक्की हो रही थी. जैसे ही गाड़ी भीड़ से बाहर निकली, मैंने एक्सीलेरेटर दबाया और कार को सीधे शहर के बाहर एक नहर के पुल तक ले गया.
वहां शेफाली के चेहरे पर घबराहट भी थी और भीड़ से निकलने की राहत भी साफ दिख रही थी. वहां से शेफाली और उनकी टीम दूसरी कार में बैठे और दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
शेफाली के जाने के बाद मैं थोड़ी देर वहीं रुका और अचानक मुझे उनका वो स्टारडम याद आया — जिसका मैं खुद गवाह था.