'परदेसियों से ना अंखियां मिलाना', एक ऐसा गीत जिसने शशि कपूर को बना दिया स्टार, कुछ यूं रचा था फिल्म 'जब जब फूल खिले' ने इतिहास

एक एक्टर फिल्म इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहा था. बड़े फिल्मी घराने का यह लड़का 1961 में धर्मपुत्र फिल्म से बतौर हीरो हिंदी सिनेमा में कदम रख चुका था. लेकिन तकदीर थी कि साथ देने का नाम ही नहीं ले रही थी.

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'परदेसियों से ना अखियां मिलाना', एक ऐसी गीत जिसने शशि कपूर को बना दिया स्टार
नई दिल्ली:

एक एक्टर फिल्म इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहा था. बड़े फिल्मी घराने का यह लड़का 1961 में धर्मपुत्र फिल्म से बतौर हीरो हिंदी सिनेमा में कदम रख चुका था. लेकिन तकदीर थी कि साथ देने का नाम ही नहीं ले रही थी. फिर अचानक उसे एक रोमांटिक फिल्म ऑफर हुई. यहां भी मुश्किल पैदा हो गई. इस एक्टर के एक्टिंग करियर को देखते हुए बड़ी-बड़ी हीरोइनों ने उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया. हीरोइन की तलाश जारी थी. फिर निर्माता मशहूर अभिनेत्री नंदा के पास पहुंचे. वह उस दौर की टॉप हीरोइनों में शामिल थीं. नंदा को कहानी अच्छी लगी और वह इस हीरो के साथ काम करने को तैयार हो गईं.

तकदीर का कमाल देखिए, यह फिल्म 1965 में रिलीज हुई और ब्लॉकबस्टर साबित हुई. दोनों की जोड़ी हिंदी सिनेमा की रोमांटिक जोड़ियों में शुमार हो गई. जी हां, हम बात कर रहे हैं शशि कपूर और नंदा की फिल्म ‘जब जब फूल खिले' की. ‘जब जब फूल खिले' नंदा और शशि कपूर के करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शामिल हुई. साथ ही इस फिल्म ने शशि कपूर के करियर को पंख लगा दिए. शशि कपूर ने फिल्म में राजा के किरदार को निभाने के लिए कड़ी मशक्कत की थी. हाउसबोट मालिकों के साथ वह रहे थे, और काफी वक्त भी गुजारा था. उन्होंने इस किरदार को किस गहराई से समझा, वह फिल्म में उनकी एक्टिंग में साफ नजर आ जाता है.


इस फिल्म की कामयाबी में इसके जादुई संगीत का अहम रोल रहा. फिल्म का म्यूजिक कल्याणजी-आनंदजी ने दिया. इसके गीतों ने फिल्म के गीतकार की भी तकदीर बदल दी. इससे पहले जहां यह शायर संघर्ष कर रहा था, फिल्म रिलीज के बाद उसके पास गीत लिखवाने वालों की कतार लग गई. यह गीतकार थे आनंद बख्शी. फिल्म का गीत ‘परदेसियों से ना अखियां मिलाना' तो पूरे देश में गूंजा और फिल्म का एवरग्रीन गीत बना. दिलचस्प यह है कि फिल्म में यह गाना तीन बार आता है. इस गाने को एक बार लता मंगेशकर ने गाया है और दो बार मोहम्मद रफी ने. एक बार रफी साहब ने हैप्पी मूड वाला गाना गाया है जबकि दूसरी बार यह सैड मूड वाला है.

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