ओटीटी की व्यूवरशिप में गिरावट, लोग कर रहे हैं सिनेमाघरों का रूख ?

मेट्रो…इन दिनों एक मध्यम बजट की फिल्म है जिसकी कुल लागत लगभग 47 करोड़ रुपये है. यह फिल्म अब तक भारत में 41.59 करोड़ रुपये कमा चुकी है. और इसे सिर्फ सिनेमाघरों से अपनी लागत निकालने के लिए 94 करोड़ कमाने हैं

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ओटीटी की व्यूवरशिप में गिरावट, लोग कर रहे हैं सिनेमाघरों का रूख ?
नई दिल्ली:

मेट्रो…इन दिनों एक मध्यम बजट की फिल्म है जिसकी कुल लागत लगभग 47 करोड़ रुपये है. यह फिल्म अब तक भारत में 41.59 करोड़ रुपये कमा चुकी है. और इसे सिर्फ सिनेमाघरों से अपनी लागत निकालने के लिए 94 करोड़ कमाने हैं , बाकी राइट्स जैसे  सॅटॅलाइट राइट्स, ओटीटी राइट्स, म्यूजिक राइट्स के साथ साथ कुछ और राइट्स इसे अलग पैसा कमा कर देंगे . वहीं इससे पहले सितारे जमीन पर जैसी ‘संवेदनशील' फिल्म ने भी बॉक्स ऑफिस पर  देश में 160 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है, फिल्म सिनेमाघरों में अभी भी चल रही है . इसका बजट करीब 97 करोड़ था और ये फिल्म मुनाफे में है . कोविड के बाद से दर्शकों का रुझान मसाला और लार्जर दैन लाइफ फिल्मों की और देखा गया पर ‘ मेट्रो इन दिनों ‘ और सितारे जमीन पर में दर्शकों की रुचि देख कर लग रहा है कि दर्शक एक बार फिर संवेदनशील कहानियों की ओर लौट रहे हैं.

गिरीश वानखेड़े, फिल्म कारोबार विशेषज्ञ, कहते हैं, “सितारे जमीन पर सक्सेसफुल फिल्में इसकी जितनी लागत थी, उसे तीन गुना इस फिल्म ने ऑलरेडी कमाई कर ली है.और अब मेट्रो इन दिनों भी अच्छा बिजनेस कर रही है. उसने भी जितनी लागत में यह फिल्म बनी थी,उसके करीब की रिकवरी तो उसने पा लिया है.इसका सिंपल सा मतलब यह है कि लोग अब इन सीरियस सब्जेक्ट्स को भी सिनेमाघरों देखना पसंद कर रहे हैं.” कोविड के बाद बड़े-बड़े सेट और लार्जर दैन लाइफ मसाला फिल्मों के आदी हो चुके और ओटीटी पर नजरें गढ़ाए बैठे दर्शक अब बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं. जानकारों का मानना है.

अभिमन्यु बंसल, सिनेमा मालिक और फिल्म वितरक, बताते हैं, “आजकल हर कोई ओटीटी से ऊबता नजर आ रहा है (OTT fatigue). इन प्लेटफॉर्म्स के बजट घट गए हैं, जिसके चलते न तो अच्छे शो बन रहे हैं जिन्हें लोग बिंज कर सकें, और न ही कोई अच्छी फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही हैं. लोग अब असल में कुछ देखने से ज्यादा वक्त यह तय करने में लगाते हैं कि आखिर क्या देखें. पुरानी फिल्मों के रिपीट रन में काफी इजाफा हुआ है, और यही ट्रेंड सिनेमाघरों में भी नजर आ रहा है. यह ओटीटी थकान निश्चित रूप से एग्ज़ीबिशन इंडस्ट्री (यानी थिएटर कारोबार) के लिए फायदेमंद साबित होगी.” ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी दर्शकों की दिलचस्पी में गिरावट देखी जा रही है. आंकड़े बताते हैं कि 2023 की तुलना में 2024 में ओटीटी पर बिताए गए कुल घंटे 25.9 बिलियन से घटकर 21.7 बिलियन रह गए हैं.

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विशेषज्ञों का मानना है कि ओटीटी पर एक जैसे कंटेंट और अधिक मसाला न मिलने से भी दर्शक थिएटर की तरफ और नई किस्म की कहानियों की ओर लौट रहे हैं. अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ग्रुप के सीओओ का कहना है, “अगर हम ओटीटी देखने में गिरावट की बात करें तो इसके कई कारण हो सकते हैं. कई लोग मानते हैं कि इसकी वजह कंटेंट की भरमार है, लेकिन मुझे लगता है असली वजह कंटेंट की विविधता की कमी है. बहुत सारा कंटेंट एक जैसा है, वही–वही शैली बन रही है और प्रयोग बहुत कम हो रहा है. यही गिरावट की बड़ी वजह बन रही है.”

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उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा कंटेंट के बीच टॉगल करना, नेविगेट करना और खोज करना भी मुश्किल होता जा रहा है, शायद कंटेंट की अधिकता के कारण. इससे भी गिरावट आ रही है. पहले लोग छोटी यात्राओं में 10–15 मिनट में कोई एपिसोड देख लेते थे, लेकिन अब लोग उस समय के लिए सोशल मीडिया, जैसे इंस्टाग्राम की तरफ जा रहे हैं ताकि जल्दी जानकारी या मनोरंजन मिल सके. यह पहले भी था लेकिन अब ज्यादा आम हो गया है.”

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अपनी बात को खत्म करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे लगता है इसका हल माइक्रो ड्रामा हो सकते हैं. भारत में अभी यह ज्यादा नहीं दिख रहा लेकिन दुनिया में यह पहले से ही लोकप्रिय है. मुझे लगता है भारत में भी अगले दो–तीन महीनों में यह शुरू होगा, जहां हर एपिसोड 2–3 मिनट का होगा और वर्टिकल फॉर्मेट में बनेगा. यह कंटेंट देखने में गिरावट को रोकने में मदद करेगा.” अगर दर्शकों में यह बदलाव वाकई है, तो यह सिनेमाघरों के लिए राहत की सांस जैसा है. खासकर उन निर्माताओं के लिए जो छोटी और मध्यम बजट की कहानियों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.”

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