इस एक्टर को मिली थी फांसी की सजा, घर वालों को लगता रहा बेटा हो गया शहीद, दिलचस्प है कहानी

आज हम आपको जिस एक्टर की बात बताने जा रहे हैं, उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. सबसे बड़ी बात कि जब तक वे जिंदा रहे, तब तक इसकी भनक उनकी फैमिली तक को नहीं हुई थी. इस अभिनेता ने एक्टिंग से पहले आजादी की लड़ाई भी लड़ी थी.

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बॉलीवुड के इस एक्टर को मिली थी फांसी की सजा
नई दिल्ली:

बॉलीवुड एक्टर्स की कई कहानियां अक्सर ही सुनने को मिलती है. कभी किसी के अफेयर तो किसी की लाइफ के अननोन पार्ट की चर्चा होती है लेकिन आज हम आपको जिस एक्टर की बात बताने जा रहे हैं, उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. सबसे बड़ी बात कि जब तक वे जिंदा रहे, तब तक इसकी भनक उनकी फैमिली तक को नहीं हुई थी. इस अभिनेता ने एक्टिंग से पहले आजादी की लड़ाई भी लड़ी थी. आइए जानते हैं उनके बारें में...

मौत की सजा पाने वाला एक्टर कौन

हम जिस अभिनेता की बात कर रहे हैं, उनका नाम नजीर हुसैन है. साल 1948 से 1996 तक फिल्मी दुनिया में उनकी धमक रही. उनकी गिनती दिग्गज कलाकारों में होती थी. हमेशा सपोर्टिंग किरदार निभाने वाले नजीर हुसैन ने हर किरदार में अपनी छाप छोड़ी. उनका जन्म 15 मई, 1922 को यूपी के उसिया गांव में हुआ था. पिता की सिफारिश पर उन्हें रेलवे में नौकरी मिली थी लेकिन बाद में ब्रिटिश आर्मी जॉइन की.

नजीर हुसैन को फांसी की सजा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दूसरे विश्व युद्ध में नजीर की पोस्टिंग सिंगापुर और मलेशिया में रही. माहौल खराब था तो युद्ध में बंदी बनाकर मलेशिया जेल भेज दिया गया. हालांकि, कुछ दिनों बाद उनकी रिहाई की गई और उन्हें भारत भेज दिया गया. यहां आकर उन्होंने आजाद हिंद फौज जॉइन की. सुभाष चंद्र बोस के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई. इसी जुर्म में उन्हें पकड़कर फांसी की सजा दी गई. जब लंबे समय तक नजीर अपने घर नहीं गए तो उनके परिवार को लगा कि बेटा शहीद हो गया है.

इस तरह हुई रिहाई

एक बार की बात है, जब नजीर को अंग्रेज ट्रेन से हावड़ा से दिल्ली लेकर आ रहे थे, तभी उन्होंने चोरी-चुपके एक चिट्ठी दिलदारनगर जंक्शन पर फेंक दिया, जो उनके परिवार वालों तक पहुंच गई. उस वक्त गांव वालों ने अंग्रेजों से छुड़वाने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हो पाए. आजादी के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

नजीर हुसैन की फिल्में

नजीर हुसैन को एक्टिंग की दुनिया में लाने का श्रेय बिमल राय को जाता है. उन्होंने 'परिणीता', 'जीवन ज्योति', 'मुसाफिर', 'अनुराधा', 'साहिब बीवी और गुलाम', 'नया दौर', 'कटी पतंग', 'कश्मीर की कली' जैसी कई जबरदस्त फिल्में की हैं. एक बार की बात है कि 1960 में उनकी मुलाकात पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से हुई, तब उन्होंने नजीर को भोजपुरी फिल्में करने को कहा. 1963 में उन्होंने पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो' की और फिर यहीं से भोजपुरी फिल्मों का दौर शुरू हुआ.

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