संगीतकार मिथुन ने बताया सोशल मीडिया के दौर में किस तरह पड़ा फिल्मों के संगीत पर असर

बदलते वक्त में फिल्मों का संगीत भी बदला, पर सोशल मीडिया के आने से संगीत के बाक़ी पहलुओं पर भी प्रभाव पड़ा है. गानों की लंबाई से लेकर, गानों के वीडियो, हुक लाइन, रील्स को ध्यान में रखना जैसी चीज़ें भी आज के संगीत का अहम पहलू बन गई हैं,

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संगीतकार मिथुन ने बताया सोशल मीडिया के दौर में किस तरह पड़ा फिल्मों के संगीत पर असर
नई दिल्ली:

बदलते वक्त में फिल्मों का संगीत भी बदला, पर सोशल मीडिया के आने से संगीत के बाक़ी पहलुओं पर भी प्रभाव पड़ा है. गानों की लंबाई से लेकर, गानों के वीडियो, हुक लाइन, रील्स को ध्यान में रखना जैसी चीज़ें भी आज के संगीत का अहम पहलू बन गई हैं, जिसका असर फिल्मों के संगीत और संगीतकारों पर भी पड़ता है. फिल्म सैयारा में कई संगीतकार हैं, पर मिथुन एक ऐसे संगीतकार हैं जिन्होंने मोहित सूरी की फिल्मों में हिट संगीत दिया है. एनडीटीवी से बात करते हुए उन्होंने बतौर संगीतकार संगीत बनने में आज़ादी की बात कही, जो कि उनके निर्देशक मोहित सूरी और निर्माता यशराज फिल्म्स ने उन्हें दी. 

संगीत के आज के माहौल को देखते हुए मिथुन कहते हैं, “देखिए, वो एक आइडियोलॉजिकल फ्रीडम की मैं बात कर रहा हूं. क्योंकि मुझे लगता है कि कोई भी व्यक्ति फेल नहीं होना चाहता. हर कोई जो एक फिल्म बनाता है, वह एक कामयाब फिल्म बनाना चाहता है. कोई भी अपनी कामयाबी का, न ही अपने संगीत या क्राफ्ट का दुश्मन होता है, लेकिन होता यह है कि हर व्यक्ति एक ज़मीन से आता है, एक विचारधारा लेकर आता है. और आज के दौर में, जब इतनी सारी चीज़ें हैं, मुझे लगता है कि हम किसी एक व्यक्ति के ऊपर दोष नहीं डाल सकते. आज का जो माहौल है, जब सोशल मीडिया का यह आउटबर्स्ट हुआ है, इतने सारे नए शब्द सुनने को मिलते हैं, जैसे एल्गोरिदम, ट्रेंड, रील्स या वायरल.”

उन्होंने आगे कहा, “हमने जब अपने काम की शुरुआत की थी, तो ये शब्द थे ही नहीं. हमें पता भी नहीं था. लोग कहते हैं गाना तीन मिनट का होना चाहिए. लेकिन मैंने जो काम किया है, ‘मौला मेरे मौला' सात मिनट का गाना है, ‘तोसे नैना लागे' नौ मिनट का, और ‘सैयारा' का टाइटल ट्रैक साढ़े छह मिनट का है, जिसे लोगों ने इतना पसंद किया, तो मुझे लगता है कि यह विचारधारा की लड़ाई है. कोई भी गलत नीयत लेकर नहीं आता. लेकिन इस सिस्टम के बीच अपनी खराई को बरकरार रखना वह अपने आप में एक युद्ध है. और वह एक भला युद्ध है, जो मुझे लगता है हर आर्टिस्ट को करना चाहिए.”

सोशल मीडिया पर एक से डेढ़ मिनट तक का मसौदा ही डाला जा सकता है, और आज जहाँ गानों और फिल्म के प्रचार के लिए सोशल मीडिया अहम हो गई है, वहाँ इसकी सीमाओं का ध्यान रखना भी ज़रूरी हो गया है. और इन्हीं सीमाओं ने संगीतकारों को एक दायरे में बाँध दिया है, जिसकी बात मिथुन ने इस इंटरव्यू के दौरान कही. पर ये बात भी सही निकली कि अगर फिल्म और गाने दिल को छू जाते हैं, तो इनकी लंबाई मायने नहीं रखती.

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