कोंकणा सेन शर्मा की एक्टिंग देख निर्देशक भी रह जाते हैं दंग, नेशनल अवॉर्ड और कई सम्मान किए अपने नाम

बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा दमदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने फिल्मों में हमेशा अलग किरदार निभाए हैं. उनकी एक्टिंग में गहराई और भावनाओं की झलक दिखती है, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है.

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कोंकणा सेन शर्मा की एक्टिंग देख निर्देशक भी रह जाते हैं दंग
नई दिल्ली:

बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा दमदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने फिल्मों में हमेशा अलग किरदार निभाए हैं. उनकी एक्टिंग में गहराई और भावनाओं की झलक दिखती है, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है. उनके किरदार लोगों के दिमाग में बस जाते हैं. ऐसा ही एक किरदार था इंदू, जो उन्होंने विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओंकारा' में निभाया था. इस रोल में उन्होंने न केवल भाषा और बोली पर पूरी तरह पकड़ बनाई, बल्कि हाव-भाव और गांव की मानसिकता में इतनी सहजता दिखाई कि निर्देशकों ने खुद कहा है कि कोंकणा किरदार में पूरी तरह डूब जाती हैं.

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कोंकणा सेन शर्मा का जन्म 3 दिसंबर 1979 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ. उनके पिता मुकुल शर्मा एक राइटर और जर्नलिस्ट थे, जबकि उनकी मां अपर्णा सेन फिल्म निर्माता और अभिनेत्री हैं. उनके नाना चिदानंद दासगुप्ता फिल्म क्रिटिक, और लेखक थे. ऐसे परिवेश में पली-बढ़ी कोंकणा की बचपन से ही अभिनय में खास रुचि थी. उन्होंने महज चार साल की उम्र में फिल्म 'इंदिरा' से करियर शुरू किया. बाल कलाकार के रूप में उनके हाव-भाव और सहजता ने दर्शकों का ध्यान खींचा. इसके बाद उन्होंने 2000 में बंगाली फिल्म में 'एक जे आछे कन्या' से कदम रखा. इस फिल्म में उनका निगेटिव रोल भी दर्शकों ने बहुत सराहा. कोंकणा को पहली बड़ी पहचान 2001 में मिली, जब उन्होंने अपनी मां अपर्णा सेन की फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज अय्यर' में काम किया. इस फिल्म में कोंकणा ने अपने किरदार की गहराई और भावनाओं को इतने प्रभावशाली ढंग से पेश किया कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवॉर्ड मिला. इसके बाद कोंकणा ने लगातार कई शानदार फिल्में की.

2005 में रिलीज हुई 'पेज 3' में कोंकणा ने पत्रकार माधवी शर्मा का किरदार निभाया. इस रोल में उन्होंने फिल्म उद्योग के अंधेरे पक्ष को बखूबी सामने रखा. उनकी एक्टिंग की तारीफ पूरे देश में हुई और फिल्म को कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. इसके बाद उन्होंने 'लाइफ इन ए मेट्रो' जैसी फिल्मों में भी शानदार काम किया. 2007 में आई विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओंकारा' उनके करियर का महत्वपूर्ण पड़ाव थी. इंदू का किरदार निभाने के लिए कोंकणा ने गांव की भाषा, बोली और व्यवहार पर पूरी पकड़ बनाई. उनके हाव-भाव, भावनाओं और मासूमियत ने किरदार को जीवंत बना दिया.

निर्देशक विशाल भारद्वाज ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि कोंकणा अपने किरदार में पूरी तरह डूब जाती हैं. यह उनकी विशेषता है कि वह किरदार को सिर्फ अभिनय से नहीं बल्कि पूरी तरह महसूस करके पेश करती हैं. कोंकणा ने अपनी फिल्मों के अलावा डायरेक्शन में भी हाथ आजमाया. 2006 में उन्होंने बंगाली शॉर्ट फिल्म 'नामोकोरन' से निर्देशन में डेब्यू किया. इसके अलावा, वह कई वेब सीरीज और शॉर्ट फिल्म्स में भी नजर आईं. अभिनय के क्षेत्र में उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान जीते. नेशनल अवॉर्ड्स, फिल्मफेयर और अन्य कई पुरस्कारों से उनकी प्रतिभा को मान्यता मिली. उन्होंने हमेशा करियर में चुनिंदा और महत्वपूर्ण किरदार चुने.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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