एक फिल्म को देखने में खर्च होते हैं 10 हजार रुपये, करण जौहर के इस दावे पर मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने दिया रिएक्शन

फिल्म निर्माता करण जौहर ने हाल ही में सिनेमाघरों में खाने-पीने की महंगी चीजों पर अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि अगर सिनेमाघरों में चीजों महंगी रही थीं तो लोग फिल्में देखना छोड़ देंगे.

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नई दिल्ली:

फिल्म निर्माता करण जौहर ने हाल ही में सिनेमाघरों में खाने-पीने की महंगी चीजों पर अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि अगर सिनेमाघरों में चीजों महंगी रही थीं तो लोग फिल्में देखना छोड़ देंगे. करण जौहर के इन दावों पर अब मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. एसोसिएशन ने बुधवार को फिल्म निर्माता करण जौहर के इस दावे पर अपनी असहमति जताई कि खाने-पीने की चीजों की बढ़ी हुई कीमतों के कारण चार लोगों के परिवार को एक फिल्म देखने में करीब 10,000 रुपये का खर्च आता है. 

सिनेमा संचालकों के संगठन ने कहा है कि चार लोगों के परिवार को मल्टीप्लेक्स में जाने पर औसतन 1,560 रुपये का खर्च आता है, जिसमें खाने-पीने की चीजों का खर्च भी शामिल है. एसोसिएशन ने कहा कि 2023 में भारत के सभी सिनेमाघरों में औसत टिकट की कीमत 130 रुपये प्रति टिकट थी. देश की सबसे बड़ी सिनेमा चेन पीवीआर आईनॉक्स ने वित्त वर्ष 2024 के लिए 258 रुपये का एटीपी बताया. एसोसिएशन ने एक बयान में कहा, 'इसके अलावा, इस अवधि के दौरान पीवीआर आईनॉक्स में खाने और पीने की चीजों पर प्रति व्यक्ति औसत खर्च 132 रुपये रहा. इससे चार सदस्यों वाले परिवार का कुल औसत खर्च 1,560 रुपये हो जाता है, जो मीडिया रिपोर्टों में बताए गए 10,000 रुपये के आंकड़े से काफी अलग है.'

आपको बता दें कि हाल ही में करण जौहर ने हॉलीवुड रिपोर्टर इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में कहा है कि दर्शकों का एक बड़ा वर्ग सिनेमाघर के बजाय रेस्तरां में जाना पसंद करता है, क्योंकि सिनेमाघर जाने में उनका बजट बिगड़ जाता है. करण जौहर ने फिल्म देखने के दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतों से जूझने वाले लोगों के बारे में बात करते हुए कहा, 'वे 100 घरों में गए और उन 100 घरों में से 90 ने कहा कि वे साल में केवल दो फिल्में ही सिनेमाघरों में देखना पसंद करेंगे. यह ऐसे लोग हैं जो हमारे दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा है. वे इतना महंगा खर्चा नहीं कर सकते हैं.'

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करण जौहर ने आगे कहा, 'दर्शक दिवाली पर या स्त्री 2 जैसी फिल्म के बारे में सुनकर सिनेमाघरों में आ सकते हैं. परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्हें सिनेमा हॉल जाना पसंद नहीं है क्योंकि जब बच्चे कहते हैं कि उन्हें पॉपकॉर्न या कुछ और खाने को चाहिए, तो उन्हें मना करना बुरा लगता है. इसलिए वे किसी रेस्तरां में जाना पसंद करते हैं, जहां वे टिकट के लिए भुगतान नहीं करते हैं. वे केवल खाने के लिए भुगतान करते हैं. दर्शक कहते हैं कि हमारा बच्चा इशारा करके कहेगा कि उसे कारमेल पॉपकॉर्न चाहिए, लेकिन हम उसका खर्चा नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि चार लोगों के परिवार के लिए औसत लागत 10,000 रुपये हो सकती है. और हो सकता है कि वे 10,000 रुपये उनकी आर्थिक योजना में बिल्कुल भी न हों.' 

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