आज के हर युवा को प्रेरित करती हैं ये 5 फिल्में, एक ने तो दुनियाभर में कमा डाले एक हजार करोड़ से भी ज्यादा

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर आधे लोग 30 या उससे कम उम्र के हैं, और  2030 के अंत तक ये संख्या 57% तक पहुंचने की उम्मीद है.

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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय युवा दिवस, जिसे विवेकानंद जयंती (12 जनवरी) के नाम से भी जाना जाता है, के उपलक्ष्य में पेश हैं कुछ आंकड़े.  संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर आधे लोग 30 या उससे कम उम्र के हैं, और  2030 के अंत तक ये संख्या 57% तक पहुंचने की उम्मीद है. यह सर्वेक्षण  इस बात को रेखांकित करता है कि युवाओं की सोच को नीति-निर्माण, संस्कृति, और परदे पर चित्रित कहानियों में ज़्यादा से ज़्यादा शामिल किया जाना चाहिए. इस राष्ट्रीय युवा दिवस पर देखें ऐसी कहानियां जो युवाओं की आकांक्षाओं, चुनौतियों, सपनों और आशाओं को चित्रित करती हैं.

सर सर सरला (टेलीप्ले)

ज़ी थिएटर का यह टेलीप्ले युवा प्रेम के साथ-साथ कल्पना और वास्तविकता के बीच टकराव को उभारता है. कहानी उन भावनाओं की पड़ताल करती है जो एक भोली भाली छात्रा सरला अपने प्रोफेसर के लिए मन में रखती है. हालाँकि प्रोफेसर पालेकर और वह एक-दूसरे के प्रति एक अनकही आत्मीयता पालते  हैं, लेकिन ज़्यादा उम्र  के प्रोफेसर अपनी भावनाओं के साथ समझौता करने में असमर्थ होने के कारण सरला को एक प्रेमहीन विवाह करने के लिए उकसाते हैं. इस कहानी का तीसरा कोण प्रोफेसर का दूसरा छात्र फणिधर है जो प्रोफेसर के प्रति मिश्रित भावनाएं रखता है. उसके मन में ये रंजिश है कि प्रोफेसर ने सरला को उससे दूर कर दिया. वर्षों बाद, जब तीनों फिर मिलते हैं, तो उनकी दबी हुई भावनाएँ सतह पर आ जाती हैं और प्रोफेसर पालेकर को एहसास होता है कि उन्होंने दो युवा जिंदगियों में  किस हद तक हस्तक्षेप किया है. सुमन मुखोपाध्याय द्वारा फिल्माए गए इस मकरंद देशपांडे टेलीप्ले में  अहाना कुमरा, संजय दाधीच और अंजुम शर्मा के साथ प्रोफेसर की भूमिका में खुद मकरंद भी हैं.

12वीं फेल (फिल्म)

विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्मित, लिखित और निर्देशित यह जीवनी  हर उस युवा के लिए प्रेरणा  की तरह है जो गरीबी के चक्र को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहा है. भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी बनने के लिए अनगिनत असफलताओं को पार करने वाले मनोज कुमार शर्मा पर  अनुराग पाठक द्वारा लिखी किताब पर आधारित, यह फिल्म दिखाती है कि समाज के हाशिए पर रहने वाला एक छात्र कैसे सफल होता है. फिल्म में विक्रांत मैसी मुख्य भूमिका में हैं और उनके साथ मेधा शंकर, अनंत वी जोशी, अंशुमान पुष्कर और प्रियांशु चटर्जी भी हैं. धैर्य और श्रम की यह सच्ची कहानी सिर्फ मनोज के इर्द-गिर्द नहीं बल्कि उस परीक्षा प्रणाली के इर्द-गिर्द भी घूमती है जो गरीब पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए संघर्षों से भरी हुई है. मनोज जब यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा में सफलता हासिल करते हैं, तो यही प्रेरणा मिलती  है कि अगर युवा हार न मानें तो कोई भी सपना हासिल कर सकते हैं.

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जवान  (फ़िल्म)

यह जबरदस्त एक्शन थ्रिलर युवाओं को ज़मीनी हकीकत से अवगत होने और देश के लिए कुछ सकारात्मक करने के लिए प्रेरित करती है. इसके नायक का जन्म जेल में हुआ था और उसका नाम मानवीय आत्मा की अजेय शक्ति को दर्शाने के लिए 'आज़ाद' रखा गया है. वह एक मिशन के साथ एक ऐसे व्यक्ति के रूप में विकसित होता है जो  देश का ध्यान उन समस्याओं  की ओर आकर्षित करता है जिनसे  जूझने वालों में शामिल हैं क़र्ज़  में डूबे किसान, कम सुविधाओं वाले अस्पतालों के डॉक्टर इत्यादि. वो नागरिकों से देश और उसके लोकतंत्र की बेहतरी के लिए वोट करने की भी अपील करता है . 'रंग दे बसंती' की तरह, यह फिल्म बदलाव का आह्वान है और इसने देश के युवाओं को काफी प्रभावित किया है.
एटली द्वारा निर्देशित इस फिल्म में शाहरुख खान, नयनतारा और विजय सेतुपति के साथ एक दोहरी भूमिका में नज़र आते हैं.

धक धक (फिल्म)

'धक धक' एक ऐसी फिल्म है जो ताज़ी हवा के झोंके की तरह महसूस होती है और युवा दर्शकों और दिल से जवान दर्शकों के लिए उपयुक्त है. कहानी में दो युवतियां अनचाही सगाई  और सोशल मीडिया पर आलोचना जैसे मुद्दों से निपट रही हैं. दूसरी ओर एक  गृहिणी और एक दादी खुद को कर्तव्यों और अपेक्षाओं के बोझ से मुक्त करने के लिए उत्सुक हैं. जब विभिन्न आयु वर्ग और सामाजिक पृष्ठभूमि की ये चार महिलाएं नई दिल्ली से दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वतीय दर्रे तक अपनी मोटरसाइकिलों पर सफर करती  हैं, तो वे अपने वास्तविक स्वरूप  को पहचान पाती हैं. यह फिल्म दिखाती है कि सपने किसी भी उम्र में देखे और हासिल किये जा सकते हैं. तरुण डुडेजा द्वारा निर्देशित और तापसी पन्नू द्वारा निर्मित, इसमें रत्ना पाठक शाह, दिया मिर्ज़ा, फातिमा सना शेख और संजना सांघी हैं.

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धूम्रपान (टेलीप्ले)

आकर्ष खुराना द्वारा मंच के लिए निर्देशित और आधार खुराना द्वारा फिल्माया गया, ज़ी थिएटर का यह टेलीप्ले तनाव से भरे कॉर्पोरेट करियर की चपेट में फंसे युवाओं के दबे हुए गुस्से और निराशा का चित्रण करता है. वे अपने ऑफिस के धूम्रपान क्षेत्र में मिलते हैं और अपने तनाव, भय और असुरक्षाओं से जूझते हैं  और  निजी  और काम से जुड़ी बातों की चर्चा करते हैं.  टेलीप्ले कामयाबी पाने की उस निरंतर दौड़ के बारे में एक कॉमेडी है, जो कभी ख़त्म नहीं होती. साथ ही कहानी मानसिक स्वास्थ्य और युवाओं के संघर्षों के  बारे में भी बात करती  है. इसमें शुभ्रज्योति बारात, आकर्ष खुराना, सार्थक कक्कड़, तारुक रैना, सिद्धार्थ कुमार, लिशा बजाज और घनश्याम लालसा भी हैं.

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