‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में आखिर कैसे आया ‘क्योंकि’ शब्द, दिलचस्प है स्मृति ईरानी के इस सीरियल की कहानी

भारतीय टेलीविजन के इतिहास में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ एक ऐसा धारावाहिक है, जिसने न केवल दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि भारतीय टेलीविजन को एक नई पहचान भी दी.

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‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के नाम की रोचक कहानी
नई दिल्ली:

भारतीय टेलीविजन के इतिहास में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी' एक ऐसा धारावाहिक है, जिसने न केवल दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि भारतीय टेलीविजन को एक नई पहचान भी दी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस लोकप्रिय शो का मूल नाम कुछ और था, और इसके नाम में ‘क्योंकि' कैसे जुड़ा? इसकी कहानी उतनी ही रोचक है, जितना यह शो स्वयं था. वजब इस धारावाहिक को बनाया जा रहा था, तब इसका नाम ‘अम्मा' रखा गया था. 

यह नाम पारंपरिक भारतीय परिवारों की भावनाओं और रिश्तों को दर्शाता था. लेकिन जब शो की अवधारणा को और आकर्षक बनाने की बात आई, तब फैशन डिजाइनर निम सूद ने सुझाव दिया कि इसका नाम ‘सास भी कभी बहू थी' रखा जाए. यह नाम भारतीय परिवारों में सास और बहू के जटिल रिश्तों को बखूबी दर्शाता था, जो दर्शकों के बीच तुरंत लोकप्रिय हो गया. इस शीर्षक ने न केवल कहानी के केंद्रीय भाव को उजागर किया, बल्कि यह महिलाओं की पीढ़ियों के बीच के संघर्ष और प्रेम को भी रेखांकित करता था.

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लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. इस शो के निर्माताओं ने इसमें एक और बदलाव किया, जिसने इसे और आकर्षक बना दिया. ‘K फैक्टर' की वजह से शीर्षक में ‘क्योंकि' जोड़ा गया, और इस तरह यह ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी' बन गया. दरअसल एकता कपूर ने अपने सारे सीरियल का नाम ‘K' से शुरू करती हैं. ऐसे में इस शो के अंदर अलग से ‘क्योंकि' जोड़ा गया. यह ‘क्योंकि' न केवल शो को एक नाटकीय अंदाज देता था, बल्कि यह उस समय के दर्शकों की भावनाओं को भी जोड़ता था. स्मृति ईरानी के अभिनय और इस शो की कहानी ने इसे भारतीय टेलीविजन के स्वर्ण युग का प्रतीक बना दिया. आज भी यह शो दर्शकों के बीच उतना ही प्रासंगिक है, और इसके नाम की यह कहानी इसके निर्माण की रचनात्मकता को दर्शाती है.

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