कहानी
साहिल कौशल अपनी पत्नी संगीता कौशल के साथ उत्तर प्रदेश के कन्नौज में रहते हैं. उनके दो बच्चे हैं—युग (पवैल गुलाटी) और रीत (दीक्षा जोशी), जो काम के सिलसिले में कन्नौज से बाहर रहते हैं. साहिल (आशुतोष राणा) एक इत्र की फैक्ट्री में अकाउंटेंट का काम करते हैं, लेकिन वे बहुत अच्छा गाते हैं और हमेशा से कव्वाल बनना चाहते थे. परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने अपना शौक़ छोड़ दिया और अकाउंटेंट बन गए. वहीं, उनकी पत्नी संगीता (शिबा चड्ढा) बहुत अच्छा इत्र बनाती हैं और यही करना चाहती थीं, लेकिन जिंदगी की भागदौड़ में इसे व्यवसाय नहीं बना पाईं.
इस दंपति के बीच से प्यार की ख़ुशबू उड़ जाती है और दोनों के बीच खटास इतनी बढ़ जाती है कि वे तलाक लेने का सोचते हैं. आगे की कहानी के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. अब बात करते हैं कि फ़िल्म कैसी है.
ख़ूबियां
1. कहानी का विषय नया और ताज़ा है. हिंदी सिनेमा में इसे अब तक किसी ने छुआ नहीं था. यह उन परिवारों की कहानी है, जिनके बच्चे काम के सिलसिले में अपने माता-पिता को छोटे शहरों में छोड़कर बड़े शहरों की ओर निकल जाते हैं. फ़िल्म पूरी ईमानदारी के साथ बनाई गई है और यह कमर्शियल दबावों से भी बची हुई है. सीमा देसाई और सिद्धार्थ गोयल को इस अनूठी कहानी के लिए पूरे नंबर मिलने चाहिए.
2. फ़िल्म भावनात्मक रूप से झकझोरती है. इसमें कुछ दृश्य और लम्हे ऐसे गढ़े गए हैं, जो दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ते हैं. कहानी के लिए इत्र के शहर कन्नौज को चुनना शानदार निर्णय था. जिस तरह से इत्र और प्रेम के बीच समानता चित्रित की गई है, वह काबिले-तारीफ़ है. लेखकों ने बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज में कन्नौज के इत्रों की घटती मांग और रिश्तों में घटती प्रेम की भावना को जोड़ा है. फ़िल्म के डायलॉग्स भी शानदार हैं और पूरी तरह से मध्यम वर्गीय परिवार की भाषा को पकड़ते हैं.
3. शिबा चड्ढा और आशुतोष राणा की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है. आशुतोष राणा इन दिनों लगातार प्रयोग कर रहे हैं और इसमें भी सफल रहे हैं. उनके किरदार में तीखापन भी है और प्रेम भी, साथ ही छोटे शहर की छाप भी. वहीं, शिबा चड्ढा ने मन मसोस कर ज़िंदगी जीने वाली एक पत्नी और माँ की भूमिका को बखूबी निभाया है. पवैल, ईशा, बृजेंद्र काला और दीक्षा भी अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं.
4. निर्देशक सीमा देसाई की तारीफ़ बनती है, क्योंकि उन्होंने अपने डेब्यू के लिए ऐसी संवेदनशील कहानी चुनी. छोटे शहरों के परिवारों की ज़िंदगी को उन्होंने बखूबी पर्दे पर उतारा है. यह कहानी शायद कई घरों में घट रही होगी, लेकिन इसे कैमरे में क़ैद करने का ख़याल बहुत कम लोगों को आया होगा.
ख़ामियां
1. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले की शुरुआत अगर सीधे कौशल परिवार की कन्नौज वाली ज़िंदगी से होती, तो यह बेहतर होता बजाय उनके बेटे की ज़िंदगी के .
2. संगीत, ख़ास तौर पर बैकग्राउंड स्कोर, कहानी की भावनात्मक गहराई के सामने थोड़ा कमजोर लगता है.
3. गाने ठीक-ठाक हैं, लेकिन इतने प्रभावी नहीं कि फ़िल्म देखने के बाद भी आपकी ज़ुबान पर टिके रहें या आप उन्हें गुनगुनाएं.
रिव्यू: ‘कौशल वर्सेज कौशल'
निर्देशक – सीमा देसाई
लेखक – सीमा देसाई, सिद्धार्थ गोयल
कलाकार – आशुतोष राणा, शिबा चड्ढा, पवैल गुलाटी, ईशा तलवार, दीक्षा जोशी, बृजेंद्र काला और गृषा कपूर
रेटिंग: 3.5 स्टार्स