Exclusive: 'हर औरत की अलग-अलग समस्या रहती हैं', पढ़ें किरण राव से खास बातचीत

Laapataa Ladies in 97th Oscars: लापता लेडीज को ऑस्कर में भेजने से किरण राव बेहद खुश हैं. ऐसे में उन्होंने एनडीटीवी इंडिया से खास बातचीत की और अपनी खुशी जाहिर की है. किरण राव ने एनडीटीवी के कई सवालों के जवाब भी दिए हैं.

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नई दिल्ली:

Laapataa Ladies in 97th Oscars: बॉलीवुड फिल्म लापता लेडीज को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. किरण राव की इस फिल्म को भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर 97वें ऑस्कर अवॉर्ड के लिए भेजा गया है. इस बात की घोषणा सोमवार को हुई है. लापता लेडीज को ऑस्कर में भेजने से किरण राव बेहद खुश हैं. ऐसे में उन्होंने एनडीटीवी इंडिया से खास बातचीत की और अपनी खुशी जाहिर की है. किरण राव ने एनडीटीवी के कई सवालों के जवाब भी दिए हैं. यहां पढ़ें उनके सवाल-जवाब से जुड़े खास अंश:-

सवाल- जब इस फिल्म को ऑस्कर में भेजने की घोषणा हुई तो आप कहां थीं ?

जवाब- मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है और खुशी बयां करने के लिए लफाज ढूंढ रही हूं. मैं अपने स्टूडियो में कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रही थी और व्हाट्सऐप पर फैमिली ग्रुप में एक मैसेज आया. जिसमें यह न्यूज थी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था. फिर उन्होंने बोला कि पता चलेगा जब न्यूज में आएगा. जब पता चला तो बहुत खुश हुई मैं.

सवाल- और आमिर खान का एक्सप्रेशन क्या था ?

आमिर खान को हम फोन कर रहे थे लेकिन वह स्क्रीनिंग में थे तो फोन लग नहीं रहा था. फिर जब उनका फोन लगा तो वह बहुत खुश हुए और उन्होंने मुझे और मेरी पूरी टीम को बधाई दी.  

सवाल- जिस वक्त सिनेमा अच्छे से काम नहीं कर रहा है तो ऐसे में लापता लेडीज अच्छा परफॉर्म करती है और अवॉर्ड के लिए जाती है तो कहीं न कहीं अपने ऊपर और इस तरह के कंटेंट के ऊपर विश्वास होता है ?

जवाब- अब होने लगा है, जब आप कभी कुछ करते हैं तो शुरुआत में बहुत सारे प्रश्न होते हैं. जैसे लोग कहते हैं कि आपने बिना स्टार, कहानी, कोई गाना बजाना नहीं, बिना किसी ग्लैमर के फिल्म बनाई तो चलेगी कैसे. जब हम फिल्म के लिए निकल पड़े थे तो बहुत सारे डाउट्स थे हमारे दिमाग में. लेकिन जब फिल्म लोगों ने देखी और तारीफ की तो तब हमें तसल्ली हुई. फिर हमने सोचा की रिस्क भी लेना चाहिए लोगों को. 

सवाल- अब इस फिल्म की लड़ाई है वो ज्यादा लंबी है क्योंकि ऑस्कर में सिलेक्ट होने के बाद जिस तरह वहां प्रमोशन करना पड़ता है, लोगों से मिलना पड़ता है. पार्टियों में जाकर मिलना होता है. यह मशक्कत ज्यादा है, या फिल्म को बनाने और रिलीज करने में ज्यादा मशक्कत हुई थी ?

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जवाब- एक फिल्म की जो जर्नी होती है वो बड़ी होती है. कभी-कभी तो 10 साल लग जाते हैं. हमें अब तक 5 साल लगे हैं. तो अभी यह जर्नी बहुत लंबी है. ऑस्कर तक पहुंचने और वहां कैंपेन करने से लेकर प्रमोशन करने तक जो चीजें हो पाएंगे अब वही सब करना है.

सवाल- फिल्म का जो मुद्दा था वह बेहद अहम था, लोगों को पसंद आया और आप इस तरह के बैकग्राउंड से नहीं आती हैं जहां घूंघट होता है, जहां देवरानी-जेठानी का वार्तालाप होती है, मुंबई में रहने वाली किरण राव कैसे इन किरदारों से और प्रॉब्लम से खुद को पहचानती हैं ?

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जवाब- बिल्कुल पहचानती हूं, क्योंकि इस कहानी के जो भी मुद्दे हैं वह बिल्कुल अलग हैं. आप शहरी और ग्रामीण भारत को छोड़ दीजिए. दुनियाभर की औरतों को इस तरह के परेशानियों से अलग-अलग स्तर पर जूझना पड़ता है. बस आपकी संस्कृति थोड़ी बदल जाती है. लेकिन यह मुद्दे रहते ही हैं. हर औरत की अलग-अलग समस्या रहती ही है. 

सवाल- ऑस्कर आपके लिए नया नहीं है, लगान से लेकर लापता लेडीज, दोनों L-L है, तो अब आपको क्या लगता है ऑस्कर तक अपनी बात पहुंचाना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है ?

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जवाब- लगान के वक्त में डायरेक्टली इन्वॉल्व नहीं थी. ऐसे में आमिर खान से लेकर बाकी लोगों से सुनती रहती थी. तो मुझे लगाता है कि ऐसा कोई सिस्टम होगा. अब साइड सीट से मुझे स्पॉट लाइम में आकर काम करना होगा, तो अब देखते हैं क्या होता है.