24 नवंबर का वो दिन और बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र को अंतिम विदाई- कैमरे के पीछे के अनदेखे पल

सिनेमा जगत की सबसे खूबसूरत शख़्सियत वाले कलाकार धर्मेंद्र नहीं रहे. 24 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार आनन-फानन में कर दिया गया. पर क्या कुछ चल रहा था 24 नवंबर को?

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24 नवंबर का वो दिन और बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र को अंतिम विदाई
नई दिल्ली:

सिनेमा जगत की सबसे खूबसूरत शख़्सियत वाले कलाकार धर्मेंद्र नहीं रहे. 24 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार आनन-फानन में कर दिया गया. पर क्या कुछ चल रहा था 24 नवंबर को? क्यों धर्मेंद्र के निधन को लेकर असमंजस की स्थिति रही? क्यों इतनी जल्दी उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया? ये सभी सवाल फ़िल्म जगत और धर्मेंद्र के चाहने वालों के दिलों में लगातार उठते रहे. पर जानते हैं, क्या हुआ 24 नवंबर 2025 को. धर्मेंद्र के निधन की खबर 23 नवंबर को एक बार फिर फैलनी शुरू हुई. पर मीडिया से लेकर फैन्स, फिल्म जगत और राजनेता सभी सजग थे कि 11 नवंबर की गलती कोई न दोहराए, जब धर्मेंद्र के निधन की खबर सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में फैला दी गई थी.

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24 नवंबर को जैसे-जैसे खबर फैलनी शुरू हुई, मीडिया के कैमरे धर्मेंद्र के बंगले के आगे जमा होने लगे. खबरें आईं कि शाम तक उनके परिवार की तरफ से बयान आएगा. लेकिन फिर खबर आई कि 1:30 बजे सांताक्रूज़ के पवन हंस श्मशान भूमि में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. फिर खबर मिली कि सांताक्रूज़ के एक और श्मशान भूमि में अंतिम संस्कार होगा, जो मस्जिद के पास है  वहीं असरानी जी का अंतिम संस्कार हुआ था.

मैं एक आने वाली फिल्म के इंटरव्यू के लिए मुंबई के बीकेसी इलाके में था. हालांकि सुबह 10 बजे से हम यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि धर्मेंद्र के निधन की खबर में कितनी सच्चाई है. इस सबके बीच लोगों को इधर-उधर फोन लगाते हुए मैं इंटरव्यू के लिए पहुंच गया, क्योंकि इंटरव्यू का वादा कर लिया था. पर मन में बेचैनी थी कि अगर धर्मेंद्र के निधन की ख़बर सही हुई तो क्या?

इंटरव्यू वाली जगह पर बैठकर मैं जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करता रहा. इसी बीच पब्लिसिस्ट ने फ़िल्म का टीज़र देखने के लिए कहा. पर बंटे हुए मन के साथ मैंने ट्रेलर देखा, आंखें लैपटॉप पर, दिमाग़ धर्मेंद्र की ख़बर पर और उंगलियां फ़ोन पर. एक-एक मिनट इंटरव्यू का इंतज़ार करना मुश्किल लग रहा था. मन में चल रहा था कि अगर इंटरव्यू शुरू होने के बाद कोई बड़ी ख़बर आ गई तो क्या? इसी कश्मकश में मेरे सामने माइक आ गया और कहा गया कि अगला इंटरव्यू मेरा है. फ़ोन पर मैसेज और कॉल्स का सिलसिला जारी था. उसी उधेड़बुन में मैंने अपना बैग उठाया और और ये कहते हुए जल्दबाजी में निकल गया कि “धर्म जी की खबर आ रही है.”

मैं पवन हंस श्मशान भूमि की तरफ़ निकल पड़ा. फिर याद आया कि अभी 1:30 बजने में वक़्त है, तो क्यों न धर्मेंद्र के बंगले की तरफ़ जाया जाए. यही सोचकर बंगले का लोकेशन लगा दिया और गाड़ी में बैठते ही अपने साथियों को आगाह कर दिया कि धर्मेंद्र जी की कुछ ख़बर उड़ रही है, तो फौरन कैमरे तैनात कर दें, घर पर भी और श्मशान भूमि पर भी. पर अभी तक यह तय नहीं था कि सांताक्रूज़ की कौन-सी श्मशान भूमि में दाह संस्कार होगा. यही जानने के लिए फोन करता रहा.

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इतने में खिड़की से बाहर देखा तो मैं पवन हंस श्मशान भूमि के सामने से गुज़र रहा था. पुलिस और ट्रैफिक पुलिस की तैनाती हो चुकी थी. यह तो तय हो गया कि यहाँ किसी रुतबेदार शख़्स को लाया जाएगा. पर वो धर्मेंद्र के अलावा कोई और भी हो सकता था। फिर भी टीम को कह दिया कि कैमरा पवन हंस पर ही भेजें.

कुछ देर में मैं धर्मेंद्र के बंगले पर पहुंच गया. वहां हलचल थी। मीडिया के कैमरे लगे हुए थे। तभी एक बड़ी कार निकली उसके पीछे एम्बुलेंस, जिसे न सजाया गया था, न उस पर कोई फोटो. उसके पीछे एक और कार, जिसमें सनी या बॉबी के बेटे थे. दिमाग़ में कई सवाल उठे अगर इसमें धर्म जी हैं, तो इतनी सादगी क्यों? बिना मीडिया को बताए, बिना ऐलान के, इतनी जल्दी में? क्या वो फिर से अस्पताल जा रहे हैं?

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आनन-फानन में मैं एक कार में बैठ गया. बड़ी असमंजस की स्थिति इस दृश्य को कैसे समझूं? क्या वाक़ई धर्म जी नहीं रहे? कार में जाते हुए बच्चे तो दिखे, पर सनी और बॉबी कहाँ हैं? क्या एम्बुलेंस में कोई और तो नहीं? फिर दिमाग़ में , हो सकता है दोनों भाई एम्बुलेंस में हों.

कार में बैठे लोगों को पवन हंस का रास्ता नहीं मालूम था, मैं उन्हें गाइड भी कर रहा था और ऑफिस में लोगों को बता भी रहा था कि यहां क्या चल रहा है. इसी बीच मुझे लाइव आने को कहा गया. कार से ही लाइव शुरू किया, पर मुश्किल यह कि क्या कहें इसलिए वही बताया जो देखा: धर्मेंद्र के घर से कारों और एम्बुलेंस का निकलना, परिवार की तरफ से कोई बयान न आना, और यह न पता होना कि एम्बुलेंस कहाँ जा रही है.

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पवन हंस पहुंचे तो पुलिस बंदोबस्त और कड़ा हो चुका था. मीडिया और फैंस की भीड़ बढ़ चुकी थी. श्मशान भूमि के दरवाज़े बंद कर दिए गए थे. कारों की जांच के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा था. बड़ी कारों की खिड़कियों पर कैमरे टिके थे ताकि अंदर बैठे लोगों से अंदाजा लगाया जा सके कि किसका अंतिम संस्कार हो रहा है. क्रेन पर फोटोग्राफर, बन रहे पुल पर फोटोग्राफर, गेट के दोनों तरफ़ मीडिया के कैमरे, सड़क पर ट्रैफिक जाम हॉर्न लगातार बज रहे थे. पुलिस भीड़ को पीछे धकेल रही थी.

कार से उतरकर मीडिया साथियों से पता चला, एम्बुलेंस यहीं आई है. हर कोई खबर में सावधानी बरत रहा था कि 11 नवंबर वाली गलती दोबारा न हो. धीरे-धीरे फिल्मी सितारों की कारें अंदर जाने लगीं. अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, सलमान खान, अक्षय कुमार, आमिर खान, शाहरुख़ ख़ान, सलीम ख़ान…फ़िल्मी हस्तियां और नेता रामदास अठावले भी अंदर गए. अब हमें पक्का हो गया धर्मेंद्र नहीं रहे.

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और कैमरों के जरिये यह ख़बर करोड़ों फैंस तक पहुंचने लगी, बॉलीवुड का ही-मैन नहीं रहा. भीड़ की आंखें नम थीं. कोई ऑफिस से भागकर आया था, कोई घर से कोई पास से, कोई दूर से. हर उम्र, हर वर्ग, महिलाएं भी, पुरुष भी. कुछ आंखों में गुस्सा भी था, “इतने बड़े स्टार… कम से कम अंतिम दर्शन तो करवा देते.”

एक बुजुर्ग व्यक्ति ने बताया — उनकी बेटी ने फोन किया, वे वाशी से अपनी पत्नी के साथ भागते हुए आए. उनकी पत्नी की आँखों से आँसू बह रहे थे. कुछ महिलाएं पुलिस से बार-बार गुहार लगा रही थीं, “एक बार बस दर्शन कर लेने दो…” पर अंदर अंतिम संस्कार शुरू हो चुका था. धर्मेंद्र का पूरा परिवार अंदर था. दोपहर 1:20 बजे बड़े बेटे सनी ने मुखाग्नि दी. बॉबी साथ थे. हेमा मालिनी और बेटी ईशा भी अंतिम विदाई में शामिल थीं। अंदर कड़ी चेतावनी थी, कोई फोन निकालकर फोटो न खींचे.

धर्मेंद्र का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन होता गया, बाहर खड़े फैंस श्मशान भूमि की तरफ टकटकी लगाए रहे, अंदर धर्मेंद्र के परिवार और फिल्म जगत के लोग उन्हें नम आँखों से विदा कर रहे थे. किसी के दिल में उनकी दरियादिली की यादें थीं, किसी के मन में उनका मुस्कुराता चेहरा. बहुत से सवाल… और उन्हीं के बीच अंतिम संस्कार समाप्त हो गया.

धीरे-धीरे कारें बाहर निकलने लगीं. मीडिया कोशिश करती रही कि शायद कोई कैमरे पर कुछ बोल दे. पर कारें भीड़ को चीरकर आगे बढ़ती रहीं. रामदास अठावले ज़रूर रुके और कैमरे पर कुछ बोलकर चले गए. फैंस से भारी सड़क धीरे-धीरे खाली होने लगी. हॉर्न का शोर कम होता गया. मीडिया छंटती गई. फैंस उदासी लेकर वापस होने लगे. 

इतना सब कुछ हुआ, भाग-दौड़ रही, पर फिर भी लगता रहा…यह कोई सपना चल रहा है…और धर्म जी ठीक हैं...

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