जानते हैं धर्मेंद्र के लिए क्यों खास था साल 1987? बॉलीवुड के ही-मैन का दुनिया भी मान गई थी लोहा

धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नही हैं. लेकिन आप जानते हैं साल 1987 के उनकी जिंदगी में काफी मायने थे. ये वो साल था जब धर्मेंद्र 52 साल के थे और उनका लोहा पूरा दुनिया ने माना था.

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जानते हैं धर्मेंद्र के लिए क्यों खास था साल 1987?

बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र की लाइफ में साल 1987 बहुत मायने रखता है. ये वो साल था जब धर्मेंद्र की उम्र 52 साल थी. लेकिन उनका जलवा पूरे उफान पर था. अगर बॉलीवुड के इतिहास में किसी एक साल को 'धरम पाजी का दबदबा' कहा जाए, तो 1987 बिना किसी मुकाबले के जीत जाएगा. ये वो वक्त था जब धर्मेंद्र सिर्फ स्टार नहीं थे, बल्कि बड़े पर्दे पर इमोशंस, एक्शन और एंटरटेनमेंट का ब्रांड बन चुके थे. करियर के 27वें साल में भी उन्होंने ऐसा धमाका किया कि थिएटर्स की सीटियां रुकने का नाम नहीं लेती थीं.

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धर्मेंद्र ने एक ही साल में सात हिट दी थीं. सोचिए, आज तो किसी सुपरस्टार के लिए ऐसी उपलब्धि का जिक्र भी कर दो तो सोशल मीडिया ऐसे गूंज उठे मानो अभी-अभी कोई ब्लॉकबस्टर रिकॉर्ड टूट गया हो. 'हुकूमत' उस साल की सबसे बड़ी कमाई वाली फिल्म बनी और बाकी फिल्मों ने भी दर्शकों को दीवाना बनाए रखा. आज के किसी भी सुपरस्टार के लिए एक कैलेंडर में सात हिट्स देना लगभग असंभव जैसा है.

धुरंधर एक्शन, सुपरस्टार का जलवा

उस दौर में एक्शन फिल्मों का बोलबाला था और धर्मेंद्र इस जॉनर के सबसे बड़े चेहरे थे. चाहे फिल्म मल्टीस्टारर हो या उनका स्क्रीन टाइम कम, दर्शकों की नजरें हमेशा उन्हीं पर टिकती थीं. 'आग ही आग', 'लोहा', 'वतन के रखवाले', 'इंसानियत के दुश्मन', 'इंसाफ कौन करेगा' और 'दादागीरी'...इन सभी फिल्मों ने थिएटर्स में तगड़ी कमाई कर साबित कर दिया कि धरम पाजी की पॉपुलैरिटी किसी आंधी से कम नहीं थी.

साल जिसने इतिहास लिख दिया

1980 के दशक में शहरों के दर्शक वीडियो की तरफ तेजी से जा रहे थे, लेकिन 1987 में धर्मेंद्र ने मानो इंडस्ट्री में नई जान फूंक दी. उनकी फिल्मों के ओपनिंग शो हाउसफुल जाते थे और भीड़ महीनों तक बनी रहती थी. हालांकि 'इंसाफ की पुकार', 'जान हथेली पर', 'मेरा धरम मेरा करम' और 'मर्द की जुबान' जैसे कुछ लंबे समय से अटकी या औसत फिल्में भी रिलीज हुईं, लेकिन सात सुपरहिट फिल्में सब पर भारी रहीं. 1987 ने साबित कर दिया कि धर्मेंद्र सिर्फ एक सुपरस्टार नहीं, बल्कि एक युग थे जिनकी चमक किसी भी दौर में फीकी नहीं पड़ती.

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