संर्घष के दिनों में असरानी ने ऐसे काटा समय, कभी चलाई साइकिल की दुकान तो कभी किया कालीनों का काम

गोवर्धन असरानी यानी शोले फिल्म के ' अंग्रेजों के जमाने के जेलर' की शुरुआती कहानी संघर्षों की रही. जयपुर के बनीपार्क में स्थित सिंधी कॉलोनी में उनके पैतृक मकान के आसपास एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है.

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संर्घष के दिनों में असरानी ने ऐसे काटा समय,
नई दिल्ली:

गोवर्धन असरानी यानी शोले फिल्म के ' अंग्रेजों के जमाने के जेलर' की शुरुआती कहानी संघर्षों की रही. जयपुर के बनीपार्क में स्थित सिंधी कॉलोनी में उनके पैतृक मकान के आसपास एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है. परिवार में रहने वाले उनके भतीजे समेत अन्य लोग किसी से भी ज्यादा बात करने की मंशा में नहीं दिखे. उनके भतीजे ने सिर्फ इतना ही कहा कि, परिवार शौक में है, लिहाजा अभी किसी से बात नहीं कर रहा. पास में ही दुकान करने वाले असरानी के हम उम्र श्याम बताते हैं कि उन्होंने अपनी जवानी के दिनों में संघर्ष किया. झोटवाड़ा रोड पर साइकिल की दुकान चलाई, तो कुछ समय के लिए कालीनों का काम भी किया. 

एमआई रोड पर उनके परिवार की कपड़ों की दुकान है. असरानी के परिजन चाहते थे कि वह काम धंधे में हाथ बटाएं, क्योंकि समाज के ज्यादातर लोग बिजनेस में ही हैं, लेकिन उनकी राह तो कुछ अलग थी. सिंधी समाज के पूर्व अध्यक्ष विजय पेशवानी ने असरानी से जुड़ी यादों पर बात करते हुए बताया कि जब भी असरानी जयपुर होते और उस समय समाज का कोई कार्यक्रम होता, तो वे जरूर उसमें शामिल होते. कई बार समाज के बुलावे पर विशेष रूप से कार्यक्रम के लिए ही जयपुर आए. 

पेशवानी कहते हैं कि, असरानी लोगों से चर्चा में एक बात कहा करते थे कि, ' आपने इस दुनिया में जन्म लिया है, तो ऐसा कुछ करके बताना चाहिए कि लोग आपकी मेहनत को पहचाने'. असरानी के बयान को याद करते हुए पेशवानी बताते हैं कि वे कहते थे, कि आपको सिंधी कभी भी भीख मांगता हुआ नहीं दिखेगा. अजमेर में भी अपने अंतिम दौरे पर उन्होंने इस बात को दोहराया था. राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने फिल्म अभिनेता गोवर्धन असरानी के निधन पर संवेदना जताई. देवनानी ने कहा कि असरानी ने अपनी मेहनत के दम पर फ़िल्म जगत में मुकाम हासिल किया.

इनपुट- शशि मोहन

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