हिंसा, अपमान और विलासता की वस्तु नहीं है महिलाएं...ये बात 'एनिमल' नहीं समझेगा

रणबीर कपूर, रश्मिका मंदाना और तृप्ति डिमरी इन दिनों एनिमल में उनके रोल को लेकर चर्चा में हैं. लेकिन यह ऐसा एनिमल है जो औरतों के ड्रीम मैन से एकदम उलट है और आज के हालात के एकदम विपरीत...

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एनिमल में महिला पात्रों का चित्रण करता है तंग
नई दिल्ली:

साल 2019 में आई फिल्म कबीर सिंह आपको याद है, जिसमें कबीर सिंह ने प्रीति को थप्पड़ जड़ दिया था, जिसने लोगों के दिलों में महिलाओं की छवि को बदल कर रख दिया. वहीं हाल ही में आई संदीप वांगा रेड्डी द्वारा निर्देशित रणबीर कपूर की एनिमल में रणविजय के किरदार द्वारा पत्नी गीतांजलि के साथ किए गए बुरे बर्ताव ने एक बार फिर से कबीर सिंह की प्रीति की याद दिला दी है. जिससे कबीर सिंह प्यार तो बहुत करता है, लेकिन रिश्ते में इज्जत जरा सी भी नजर नहीं आती है. एनिमल देखने पर यह बात जाहिर भी हो जाती है. ऐसा ही एक सीन है, जहां रणविजय अपना प्यार पाने के लिए गीतांजलि की सगाई तुड़वा देता है. लेकिन शादी के बाद अपने अफेयर को वह कहीं से भी गलती नहीं मानता है.

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एनिमल का एक और किरदार अबरार है, जो महिलाओं को सिर्फ भोग विलास की वस्तु समझता है. इस तरह से एनिमल फिल्म पुरुषों की ऐसी दुनिया दिखाती है जहां स्त्री के लिए कोई जगह नहीं. फिल्म में स्त्री का काम है तो सिर्फ आंख मूंदकर पुरुषों के इशारों पर चलना. एनिमल की कहानी में रश्मिका मंदाना, तृप्ति डिमरी और मानसी तक्षक के किरदारों को देखकर ऐसा लगता है कि इनकी जिंदगी का कोई मकसद नहीं है. सिनेमा के इस दौर में ऐसे किरदार महिलाओं की छवि को केवल कमजोर ही नहीं करते बल्कि दिखाते हैं कि स्त्री दबी हुई है जो पुरुषों के इशारों पर चलने वाली है. 

दुर्भाग्य की बात यह है कि एनिमल उस दौर में आई है जब महिलाएं हर साल संघर्ष का नया उदाहरण पेश करती हैं और शानदार मुकाम भी साहिल कर रही हैं. महिलाएं आज दुनिया के हर उस क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं जिन पर कभी पुरुषों का वर्चस्व हुआ करता था. वहीं एनिमल के इस हल्ले के बीच मुझे एक ऐसी भी दुनिया नजर आती है जिसमें महिलाएं सिर्फ भोग-विलास के अलावा सम्मानजनक नहीं है, जबकि महिलाएं ईश्वर की सबसे खूबसूरत नेमत और अपने आप में बहुत मजबूत है. यह महिलाएं ना सिर्फ प्यार करना जानती हैं बल्कि अपने तिरस्कार के खिलाफ मजबूती से खड़ी होती हैं. 

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अगर सिनेमा में महिलाओं के सम्मान की बात की जाए तो कोरियाई वेब सीरीज और फिल्में एक आदर्श उदाहरण बनती दिखाई देती हैं, जिनमें महिलाओं को एक मजबूत किरदार के तौर पर दिखाया गया है. कोरियाई सिनेमा में पुरुष भी ऐसे हैं जो अपनी जिंदगी में कितने भी क्रूर हों लेकिन महिलाओं का तहेदिल से सम्मान करते हैं. इसका पहला उदाहरण डिसेंडेंट ऑफ द सन है. यह फिल्म एक फौजी और महिला डॉक्टर की प्रेम कहानी कहती है. अगर एनिमल का रणविजय अपने प्यार गीतांजलि को पाने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाता है. लेकिन डिसेंडेंट ऑफ द सन का फौजी ना केवल अपने प्यार की इज्जत करता है, बल्कि महिला के तौर पर उनकी भावनाओं का भी सम्मान करता है.  

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बात यहीं खत्म नहीं होती है, एनिमल के रणविजय की छवि को कोरियाई की एक और वेब सीरीज विनशेन्जो भी तोड़ती है. जिसमें एक लॉयर माफिया है, जो अपने देश में वापस पैसों के लिए लौटता है. लेकिन एक मामले में वह बुराई के खिलाफ लड़ता है. लेकिन उसका एक अलग रूप भी दिखता है जो अपनी एक महिला दोस्त के काम और पर्सनैलिटी की इज्जत करता है. 

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केवल विनशैन्जो ही नहीं द ग्लोरी भी महिला के सम्मान को अच्छे से दर्शाती है. जिसकी कहानी एक लड़की की है, जो स्कूल टाइम में रैगिंग का शिकार होती है. वहीं हद पार होने के बाद वह यंग ऐज में बदला लेने का फैसला करती है. इसमें उससे प्यार करने वाला हीरो उसके ऊपर हक जमाने की बजाय बदला लेने में साथ देता है. रैगिंग करने वालों को सबक सिखाता है. इस पूरी सीरीज में एक महिला की कहानी दिखाई है, जो दर्द सहकर भी मजबूती से अपने हक के लिए लड़ती है. 

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एनिमल के रणविजय को प्यार का मतलब वेब सीरीज हैप्पीनेस से सीखना चाहिए, जिसकी कहानी स्कूल में एक लड़के से प्यार से शुरू होती है. लेकिन वह अपना प्यार हासिल करने के लिए ना रणविजय की तरह जबरदस्ती करता है और ना ही पागलपन दिखाता है. हैप्पीनेस का हीरो रणविजय से उल्ट अपने प्यार की मर्जी का इंतजार करता है. लेकिन एनिमल में रणविजय अपने प्यार पर हक जमाने का एक भी मौका नहीं छोड़ता. फिल्म में तृप्ति डिमरी का जोया किरदार लोगों के दिलों में उतरता है, लेकिन यह फिल्म रिश्ते की नींव पर वहां खरी नहीं उतरती जब रणविजय की पत्नी जोया के साथ अफेयर पता चलने के बाद उसे आसानी से माफ कर देती है. जबकि नेटफ्लिक्स पर मौजूद द वर्ल्ड ऑफ द मैरिड की कहानी इससे बिल्कुल अलग है, जिसमें एक शादीशुदा जोड़े का रिश्ता पति के अफेयर के साथ टूट जाता है. दोनों एक-दूसरे से दूर होकर भी बच्चे की परवरिश करते हैं. वहीं हैरानी कि बात यह है कि पति अपनी गलती को मानता है. जबकि रणविजय के साथ ऐसा नहीं देखने को मिला है.

बेशक डायरेक्टर ने अपना नजरिया पेश किया है और फिल्म को पसंद भी किया जा रहा है. लेकिन इस सारे सीन के बीच मुझे मिशेल ओबामा की वो बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा है, 'महिला होने के नाते हम जो हासिल कर सकते हैं उसकी कोई सीमा नहीं .' शायद हमारे फिल्म निर्देशकों को भी इस बात को ध्यान रखने की कोशिश करनी चाहिए.

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