शाह बानो पर अब बनने जा रही है फिल्म, भारत का वो केस जो खूब रहा सुर्खियों में

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसे अब 40 साल पूरे हो गए हैं. यह फैसला भारत के सबसे चर्चित और विवादास्पद न्यायिक फैसलों में से एक रहा है.

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शाह बानो पर अब बनने जा रही है फिल्म,
नई दिल्ली:

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम के मामले में एक  ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसे अब 40 साल पूरे हो गए हैं. यह फैसला भारत के सबसे चर्चित और विवादास्पद न्यायिक फैसलों में से एक रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड. वक्फ बोर्ड. ट्रिपल तलाक. शाह बानो. ये सिर्फ सुर्खियां नहीं हैं. ये उस दौर की गूंज हैं जब  अदालत का एक मामला जनमत का तूफान बन गया, देश की धर्मनिरपेक्षता की कसौटी बना, जिसने  एक लंबी बहस को जन्म दिया: समानता बनाम पहचान.

खबरें हैं कि शाह बानो केस और ऐसे अन्य मामलों से प्रेरित एक शक्तिशाली फीचर फिल्म बन रही है, जिसका निर्देशन सुपर्ण वर्मा कर रहे हैं. फिल्म में यामी गौतम और इमरान हाशमी मुख्य भूमिकाओं में हैं, और सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में इसकी शूटिंग लखनऊ में पूरी हुई है. यह फिल्म यामी की ‘आर्टिकल 370' के बाद अगली बड़ी थिएट्रिकल रिलीज मानी जा रही है, जो कानूनी लड़ाइयों के मानवीय पहलू और उनके राष्ट्रीय प्रभाव को गहराई से दिखाएगी.

1978 में, 62 वर्षीय शाह बानो पांच बच्चों की मां ने अपने वकील पति मोहम्मद अहमद खान द्वारा ट्रिपल तलाक देकर छोड़ने के बाद गुज़ारे भत्ते के लिए धारा 125 सीआरपीसी के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. उनके पति ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर सिर्फ तीन महीने की इद्दत के बाद कोई भत्ता देने से इनकार कर दिया.

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सात साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया, और कहा कि धारा 125 सभी नागरिकों पर लागू होती है, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता और तलाकशुदा महिला को गुज़ारा भत्ता मिलना उसका संवैधानिक अधिकार है.

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यह निर्णय रूढ़िवादी समूहों के विरोध का कारण बना, जिसके चलते राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम पास कर दिया, जिससे इस फैसले की धार कम हो गई. इस प्रकरण ने वोट बैंक की राजनीति, यूनिफॉर्म सिविल कोड, और धर्मनिरपेक्षता पर बहस को दोबारा जगा दिया, जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेता आज भी शाह बानो केस को यूनिफॉर्म सिविल कोड और कानूनी सुधारों की बहस में एक निर्णायक मोड़ के रूप में उद्धृत करते हैं. कभी शाह बानो की आवाज़ सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में गूंजी थी. चार दशक बाद, वही आवाज़ लौट रही है और इस बार, और भी बुलंद, और भी बेखौफ बड़े पर्दे पर.

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