पृथ्वी नारायण शाह से युवराज हृदयेंद्र तक, नेपाल के राजशाही की पढ़िए पूरी कहानी
नेपाल में कभी दबी आवाज से तो कभी जोरशोर से, राजतंत्र वापसी की मांग उठती रहती है. हालिया Gen Z क्रांति के दौरान भी ऐसा हुआ. पड़ोसी देश में राजशाही कैसे परवान चढ़ी और किस तरह खून में सनकर इतिहास के पन्नों में दफन हो गई, इसकी दिलचस्प कहानी है.

नेपाल में 240 साल पुराने राजतंत्र का शासन, लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के बाद 2008 में भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन उसकी यादें लोगों के जेहन में अब भी ताजा हैं. पुरानी पीढ़ी के लोग ही नहीं, नए जमाने के बहुत से युवा भी उस दौर के शासन को मौजूदा सरकारों से बेहतर मानते हैं. यही वजह थी कि नेपाल में Gen Z क्रांति के दौरान एक मांग पुरजोर तरीके से उठी- राजशाही की वापसी की मांग. नेपाल के आर्मी चीफ अशोक राज सिगडेल जब देश को संबोधित करने आए, तो उनके पीछे राजा पृथ्वी नारायण शाह की तस्वीर लगी थी. आधुनिक नेपाल के संस्थापक कहे जाने वाले इन्हीं पृथ्वी नारायण शाह की मूर्ति के नीचे आंदोलनकारियों ने एक बड़ा प्रदर्शन किया था. मार्च में राजतंत्र वापसी के लिए नेपाल में जोरदार प्रदर्शन हुआ था. नेपाल में राजशाही कैसे परवान चढ़ी और किस तरह खून में सनकर इतिहास के पन्नों में दफन हो गई, इसकी दिलचस्प कहानी है.
हिमालय की गोद में बसे नेपाल में आधुनिक राजशाही का इतिहास मूल रूप से तीन हिस्सों में बंटा हुआ है. मौजूदा शाह राजवंश की मूल शुरुआत पृथ्वी नारायण शाह से ही मानी जाती है. 1723 में जन्मे पृथ्वी नारायण शाह गोरखा के राजा थे. उन्हें आधुनिक नेपाल का निर्माता माना जाता है.
पृथ्वी नारायण शाहः आधुनिक नेपाल के निर्माता
- 18वीं सदी में नेपाल का इलाका कई छोटे-छोटे स्वतंत्र प्रांतों में बंटा हुआ था. इनमें बाइसे (कर्णाली क्षेत्र के 22 राज्य) और चौबीसे (गंडकी क्षेत्र के 24 राज्य) शामिल थे. काठमांडू घाटी में तीन मल्ल राजवंशीय राज्य- काठमांडू, भक्तपुर और पाटन थे. ये राज्य आपस में लड़ते रहते थे. इससे इलाके में अस्थिरता बनी रहती थी.
- पृथ्वी नारायण शाह का जन्म 1723 ई. में गोरखा के राजा नरभूपाल शाह और रानी कौसल्यावती के यहां हुआ. बचपन से ही उन्हें रणनीति, कूटनीति, राजकाज और धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान मिला. इसने उनकी रणनीतिक सोच को प्रभावित किया.
- 1743 में पिता के निधन के बाद, 20 साल की उम्र में पृथ्वी नारायण शाह गोरखा के राजा बने. इसके एक साल के अंदर 1744 में पृथ्वी नारायण ने नुवाकोट पर विजय हासिल की. यह उनकी पहली बड़ी सैन्य सफलता थी. इसके बाद उन्होंने काठमांडू घाटी, किरात क्षेत्र, बाइसे-चौबीसे राज्य आदि को अपने अधीन किया. 52 साल की उम्र में उनका निधन हुआ.

19वीं सदी में राणा शासन
- 1846 तक शाह राजवंश के शासक कमजोर पड़ गए थे. दरबार में सत्ता के लिए संघर्ष चरम पर था. उस वक्त एक महत्वाकांक्षी सामंत जंग बहादुर राणा ने सत्ता पाने की योजना बनाई. 14 सितंबर 1846 को काठमांडू के कोत (शस्त्रागार) में एक नरसंहार हुआ. इसमें जंग बहादुर ने अपने प्रभावशाली विरोधियों की हत्या कर दी और खुद को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
- राणा शासन के दौरान शाह राजा सिर्फ नाममात्र के शासक थे, असल सत्ता राणाओं के हाथ में थी. जंग बहादुर ने नेपाल की सेना और प्रशासन को आधुनिक बनाया. ईस्ट इंडिया कंपनी से संबंध बनाए और 1857 के भारतीय विद्रोह में अंग्रेजों का समर्थन किया. बदले में नेपाल को कुछ इलाके दिए गए.
- राणा शासन के दौरान कठोर सामाजिक व्यवस्था बनाई गई. हालांकि इससे जातीय और सामाजिक भेदभाव बढ़ा. करों को व्यवस्थित करने जैसे कुछ आर्थिक सुधार भी किए. राणा शासन 1951 तक चला. राजा त्रिभुवन के नेतृत्व में हुए जनांदोलन ने इसे खत्म कर दिया.
20वीं सदी में राजशाही की वापसी
- 1951 में राणा शासन खत्म हो गया. राजा त्रिभुवन ने शाह राजवंश की सत्ता बहाल की. राजा त्रिभुवन ने प्रजातंत्र की स्थापना की कोशिश की, लेकिन पूर्ण लोकतंत्र लागू नहीं हो सका. 1955 में उनकी मृत्यु हो गई.
- राजा महेंद्र ने 1960 में पंचायत व्यवस्था लागू की, जिसमें राजा के पास व्यापक शक्तियां थीं. महेंद्र ने भारत और चीन से संतुलित संबंध बनाए. नेपाल को यूएन और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय किया. यह व्यवस्था 1990 तक चली.
- 1990 में नेपाल में फिर से जनांदोलन हुआ. राजा बीरेंद्र ने पंचायत व्यवस्था खत्म करके बहुदलीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजतंत्र लागू किया. दार्जिलिंग में पढ़े, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे बीरेंद्र एक लोकप्रिय राजा थे. उन्होंने नेपाल को स्थिर और आधुनिक बनाने की कोशिश की.

2001 का शाही नरसंहार
- राजा बीरेंद्र की शादी 1970 में ऐश्वर्य राज्य लक्ष्मी शाह से हुई. उनके तीन बच्चे थे- दीपेंद्र, श्रुति और निरंजन. 1 जून 2001 को काठमांडू में शाही परिवार के निवास नारायणहिती पैलेस में पूरा परिवार इकट्ठा था. खबरें बताती हैं कि बीरेंद्र के बेटे दीपेंद्र एक साधारण परिवार की लड़की देवयानी राणा से शादी करना चाहते थे, लेकिन परिवार राजी नहीं था.
- इसका गुस्सा दीपेंद्र ने नारायणहिती पैलेस में हुई पार्टी में निकाला. दीपेंद्र एक-दो ड्रिंक लेकर चले गए. थोड़ी देर बाद फौजी वर्दी में, दो असॉल्ट राइफल लेकर लौटे और अंधाधुंध फायरिंग कर दी.
- इस गोलीकांड में पिता बीरेंद्र, मां ऐश्वर्य, भाई निरंजन, बहन श्रुति और 5 अन्य रिश्तेदार मारे गए. इसके बाद दीपेंद्र ने खुद को गोली मार ली. तीन दिन बाद दीपेंद्र की मौत हो गई. इसके बाद बीरेंद्र के भाई ज्ञानेंद्र गद्दी पर बैठे और 2008 में राजशाही खत्म होने तक राजा रहे.
नेपाल का लोकतंत्र, और असलियत
नेपाल में राजशाही के खिलाफ आंदोलन 1996 में ही शुरू हो गया था. करीब 10 वर्षों तक चले माओवादी सशस्त्र आंदोलन के दौरान 17 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. यह संघर्ष 2006 में एक शांति समझौते के साथ खत्म हुआ और 240 साल पुरानी राजशाही की सत्ता खत्म हो गई. 2008 में नेपाल ने लोकतांत्रिक गणराज्य का रूप लिया. 2008 से 2025 तक 17 साल के दौरान नेपाल में 14 बार सरकारें बनीं. ज्यादातर सरकारें गठबंधन की रहीं. कोई भी सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई.
भ्रष्टाचार, कुशासन से जनता का मोहभंग
पुष्प कमल दहल प्रचंड, केपी शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा जैसे नेता बार-बार सत्ता में आते रहे. ओली 4 बार, प्रचंड 4 बार और देउबा 2 बार प्रधानमंत्री रहे. बीच-बीच में माधव कुमार नेपाल, झाला नाथ खनल, बाबूराम भट्टराई, सुशील कोईराला भी सरकार में रहे. लेकिन नेपाल का लोकतांत्रिक सफर राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के साये में जकड़ा रहा. सरकारी ठेकों में घोटाले, भर्तियों में पक्षपात और अंतरराष्ट्रीय सहायता के दुरुपयोग जैसे आरोप बार-बार लगे. जनता का इतना मोहभंग हुआ कि राजशाही की वापसी की मांग रह-रहकर जोर पकड़ती रहती है.

नव युवराज में दिखती है नई उम्मीद
नेपाल के आखिरी राजा ज्ञानेंद्र अब एक आम नागरिक की तरह जिंदगी बिता रहे हैं. उनके बेटे पारस का बेटा हृदयेंद्र शाह नेपाल के Gen Z में भी काफी पॉपुलर हैं. 30 जून 2002 को जन्मे हृदयेंद्र काठमांडु के लिंकन स्कूल से पढ़ाई के बाद अमेरिका के बोस्टन से मास्टर्स कर रहे हैं. उनका काफी समय विदेश में बीता है. राजा ज्ञानेंद्र ने राजशाही खत्म होने से पहले हृदयेंद्र को भावी राजा घोषित कर दिया था. उन्हें नव युवराज की उपाधि दी गई थी. नेपाल के कई लोगों को उनमें लोकप्रिय राजा बीरेंद्र की छवि नजर आती है.
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