गाजा युद्ध के दो साल: हमास और इजरायल ने क्या खोया, क्या पाया

इजरायल पर हमास के हमले के आज दो साल पूरे हो गए. इस हमले में करीब 12 सौ लोग मारे गए थे और 251 लोग बंधक बनाए गए थे. इसके जवाब में हुए इजराइली हमले में अब तक करीब 66 हजार लोग मारे जा चुके हैं. इस लड़ाई से किसे क्या मिला, बता रहे हैं डॉक्टर पवन चौरसिया.

फिलस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास ने सात अक्तूबर 2023 को इजरायल पर हमला किया था. आज उस हमले की दूसरी बरसी है. यह कहना गलत नहीं होगा की पश्चिम एशिया की राजनीति और व्यापक भूराजनीति पर जितना प्रभाव इस एक घटना ने डाला है, उतना हाल के समय की किसी और घटना ने नहीं डाला होगा. इस हमले के जवाब में गाजा से हमास को उखाड़ फेकने के लिए इजरायल ने युद्ध शुरू किया. इसकी जद में एक के बाद एक कई देश आते चले गए. गाजा में इजरायल के जमीनी आक्रमण से वहां करीब 66 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. गाजावासी पलायन, तबाही और भुखमरी के शिकार भी हुए हैं. इसको लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है. कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिनके जवाब आज भी बहुत मुश्किल है. मसलन, क्या इन दो सालों में इजरायल अपना लक्ष्य हासिल कर पाया है? क्या हमास पूरी तरह से खत्म हुआ है? क्या पश्चिम एशिया और अधिक शांति और सुरक्षित हुआ है या फिर या फिर इस हमले से अस्थिरता का एक नया दौर शुरू हो चुका है? 

हमास का हमला और इजरायल का जवाब 

सात अक्टूबर 2023 को हमास के लड़ाकों ने गाजा सीमा पार कर इजरायल पर हमला किया. इसमें करीब 1,200 लोग मारे गए. हमास के लड़ाके 251 इजरायलियों को बंधक बनाकर अपने साथ ले गए. इस हमले के जवाब में इजरायल ने आठ अक्तूबर गाजा पर हमला शुरू कर दिया. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा युद्ध के दो मुख्य उद्देश्य बताए थे. पहला, इजरायल से अपहृत सभी बंधकों को वापस लाना और दूसरा हमास को पूरी तरह से खत्म कर देना. लेकिन दो साल बाद भी वे इनमें से कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए हैं. गाजा में रखे गए 251 बंधकों में से 148 ही अबतक जीवित इजरायल वापस लाए गए हैं. इनमें से आठ व्यक्तियों को इसरायली सेना वापस लाई है. कई बंधकों के शव हमास ने इजरायल वापस लौटाए हैं. इजरायली सरकार के मुताबिक 48 बंधक अभी भी हमास की कैद में हैं. लेकिन माना जा रहा है कि इनमें से केवल 20 ही जिंदा हैं.

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हमास को इजरायल, यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य सरकारों ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है. इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार जैसे उसके टॉप नेताओं के मारे जाने के बाद भी हमास गाजा में अब भी सक्रिय है. इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि हमास एक आतंकी संगठन से अधिक एक विचारधारा का प्रतीक है. उसके केंद्र में इस्लामिक चरमपंथ और इजरायल का सशस्त्र विरोध है. इससे आम फिलस्तीनी उससे सहानुभूति रखते हैं. इन दो सालों में गाजा में हुई तबाही के बाद भी उसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं देखने को मिली है. इस क्षेत्र में रहने वाली फिलस्तीनी जनता को दो साल से अप्रत्याशित तबाही का सामना करना पड़ रहा है. हमास की ओर से संचालित गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इजरायल के सैन्य अभियानों में करीब 66 हजार लोग मारे गए हैं. इनमें से करीब 80 फीसदी आम फिलस्तीनी नागरिक हैं. कई जानकारों का दावा है की गाजा में 90 फीसदी से अधिक इमारतें या तो नष्ट हो गई हैं या क्षतिग्रस्त. इससे वहां से लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.

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बेंजामिन नेतन्याहू के सामने संकट क्या है

कुछ जानकारों का कहना है कि बेंजामिन नेतन्याहू युद्ध खत्म नहीं करना चाहते हैं. इसीलिए वो हर तरह के युद्ध विराम समझौते के प्रयास को असफल कर देते हैं. दरअसल नेतन्याहू घरेलू राजनीति में भारी झंझावतों में फंसे हैं. जानकारों का मानना है कि नेतन्याहू का युद्ध जारी रखने का दृढ़ संकल्प राजनीतिक आत्म-संरक्षण और वैचारिक दृष्टिकोण से प्रेरित है न कि केवल सैन्य जरूरत से. बेंजामिन नेतन्याहू हमास के हमले के पहले से भ्रष्टाचार के मुकदमों का सामना कर रहे हैं. इससे बचने के लिए उन्होंने युद्ध का इस्तेमाल किया. जब तक युद्ध चलता रहेगा, तब तक उनके ऊपर चल रहे मुकदमे स्थगित रहेंगे. इससे इजरायली जनता का ध्यान उनके कथित दुराचार से हटकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर केंद्रित है. कई विश्लेषक तो यह भी मानते हैं कि नेतन्याहू ने युद्धविराम चर्चाओं में जानबूझकर बाधा डाली. इसके इतर उनका अति-राष्ट्रवादी गठबंधन, इतामार बेन-ग्वीर और बेजलेल स्मोट्रिच जैसे धुर-दक्षिणपंथी सहयोगियों पर निर्भर है. ये गाजा में स्थायी कब्जे और फिलस्तीनी क्षेत्रों में यहूदी बस्तियों के विस्तार पर जोर देते हैं. इसलिए इजरायल द्वारा किया गया कोई भी समझौता फिलस्तीनी प्रशासन को स्थापित करने की अनुमति देता है, इस स्थिति में ये लोग नेतन्याहू सरकार को अस्थिर कर सकते हैं.

गाजा पर हमले में इजरायल को दो बड़े नुकसान उठाने पड़े हैं. इससे उसकी विदेश नीति पर बहुत दबाव पड़ रहा है. पहला तो यह की वैश्विक स्तर पर उसका समर्थन कम हुआ है. इजरायल की गाजा नीति के विरोध में अमरीका और यूरोप के उन देशों में भी इजरायल के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन देखने को मिला है, जो उसके सहयोगी और समर्थक माने जाते हैं. दूसरा नुकसान यह हुआ है की फिलस्तीन देश की स्थापना का मुद्दा एक बार फिर पश्चिम एशिया की राजनीति के केंद्र में आ गया है. लंबे समय से इजरायल यह प्रयास कर रहा था कि फिलस्तीन का मुद्दा इजरायल के लिए अरब देशों से संबंध बढ़ाने में अवरोध न बने. पूरी दुनिया इजरायल-फिलस्तीन विवाद को हल किए बिना इजरायल से आर्थिक और सामरिक रिश्ते बनाती रहे.

गाजा में इजरायली हमले के विरोध में भारत समते दुनिया के कई दूसरे देशों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

गाजा में इजरायली हमले के विरोध में भारत समते दुनिया के कई दूसरे देशों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

दुनिया में फिलस्तीन के लिए बढ़ता समर्थन

गाजा के आज के हालात ने कई देशों को एक स्वतंत्र फिलस्तीन देश को मान्यता देने के लिए प्रेरित किया है. सात अक्तूबर के हमले से पहले भारत समेत दुनिया के करीब 140 देशों ने फिलस्तीन को मान्यता दी थी. हमले के बाद से फ्रांस, ब्रिटेन, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा समेत 20 और देशों ने फिलस्तीन को मान्यता दी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चार फिलस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दे चुके हैं. यह स्थित इजरायल के लिए हितकारी नहीं है. इस तरह से इन देशों ने दो देशों के सिद्धांत (जिसे भारत भी स्वीकारता है) के प्रति सहमति जताई है. इसका अर्थ है इजरायल से सटा एक स्वायत्त फिलस्तीन देश. यूरोपीय देशों की ओर से फिलस्तीन को दी गई मान्यता को नेतन्याहू ने हमास के हमले को पुरस्कृत करने जैसा बताया है. इसका दूसरा पहलू यह है कि जिन देशों ने फिलस्तीन को मान्यता दी है, उन्होंने हमास के फिलस्तीनी राज्य में शामिल होने की संभावना को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. 

यह भी नहीं है कि इजरायल को केवल नुकसान ही उठाना पड़ा है. पिछले दो साल में इजरायल अपने दुश्मनों को भारी नुकसान पहुंचाने में सफल रहा है. इसमें उसका सबसे बड़ा विरोधी ईरान भी है. गाजा युद्ध केवल गाजा तक सीमित नहीं रहा है. लेबनान के हिज्बुल्लाह और यमन के हूतियों ने गाजा में युद्ध शुरू होने के बाद हमास से एकजुटता दिखाई थी. हमास, हिज्बुल्लाह और हूती को ईरान से वित्तीय और हथियारों की मदद मिलती है. इजराइल ने इन तीनों पर निशाना साधा है. इजरायल ने सितंबर 2024 में बेरूत में एक हमला कर हिज्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह को मार डाला था. इजरायली रक्षा बलों ने यमन की हूती-नियंत्रित राजधानी सना पर भी इस साल अगस्त में हमला किया था. इसमें हूती सरकार के प्रधानमंत्री अहमद अल राहवी और उनकी कैबिनेट के नौ मंत्री और दो शीर्ष अधिकारी मारे गए थे. 

इजरायल ने किसी को नहीं छेड़ा

हमास के हमले के बाद इजरायल ने पश्चिम एशिया के कई देशों पर हमले किए हैं. सबसे ताजा हमला उसने कतर पर किया. इजरायल ने कतर पर यह कहते हुए मिसाइल दागी की वो अपने दुश्मनों को चुन-चुन कर मारेगा, भले ही वो किसी भी देश में हों. कतर में उसे हमास नेतृत्व को निशाना बनाया था. हमास के ये लोग इजरायल से जारी शांति वार्ता के लिए ही कतर में थे. इसी सिलसिले में इजरायल और ईरान का युद्ध भी हुआ. इसमें उसे अमरीका का भी साथ मिला. दोनों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाने का दावा किया. साल 2024 के अंत में सीरिया में बशर अल-असद सरकार का पतन हो गया. इस तरह ईरान ने अपना एक सहयोगी खो दिया. असद इजरायल विरोधी थे. इस तरह ईरान, सीरिया, लेबनान और गाजा में इजरायल के विरोधियों को बड़ा झटका लगा है. इस क्षेत्र में इजरायली सैन्य प्रभुत्व पहले से कहीं अधिक मजबूत हुआ है. 

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को घरेलू मोर्चे पर भी भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. तेल अवीव में बंधकों की रिहाई के लिए प्रदर्शन करते लोग.

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को घरेलू मोर्चे पर भी भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. तेल अवीव में बंधकों की रिहाई के लिए प्रदर्शन करते लोग.

क्या सफल होंगे शांति के प्रयास?

बीते दो साल में कतर, मिस्र और अमरीका ने समय-समय पर संघर्ष विराम के प्रयास किए. इससे हालात कुछ ठीक तो हुए हैं. लेकिन शांति ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई. गाजा में युद्ध अभी भी जारी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी 20 सूत्रीय गाजा शांति योजना पेश की है. इससे कुछ उम्मीद जगी है. यह प्रस्ताव दोनों ही पक्षों की महत्वपूर्ण मांगों को समायोजित करता है. इसमें सभी इजरायली बंधकों को छोड़ना और भविष्य में फिलस्तीन राज्य को मान्यता देने जैसी बातें शामिल हैं. लेख के लिखे जाने तक इजरायल और हमास ने मिस्र में इस प्रस्ताव पर बातचीत शुरू कर दी थी. वार्ता से पहले दोनों पक्षों ने कुछ सकारात्मक रुख दिखाया. हालांकि हमास ने शांति योजना के प्रस्तावों पर आंशिक रूप से सहमती जताई है. लेकिन उसने कई प्रमुख मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिसमें उसके निरस्त्रीकरण और गाजा में उसकी भविष्य की भूमिका जैसे विषय शामिल हैं. योजना के मुताबिक हमास को तीन दिन में बाकी बचे 48 इजरायली बंधकों को रिहा करना होगा. इजरायली सेना भी दो साल के युद्ध से थक चुकी है. फिलस्तीनी भी चाहते हैं की जल्द शांति आए. राष्ट्रपति ट्रंप ने इजरायल को गाजा में बमबारी बंद करने को कहा है. इसके बाद भी गाजा से ऐसी खबरें आ रही हैं कि इजरायली हमला जारी हैं. ऐसे में जब तक दोनों पक्ष समझौते की भावना का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक पश्चिम एशिया में शांति की उम्मीद कमजोर होती जाएगी. 

अस्वीकरण: डॉ. पवन चौरसिया,इंडिया फाउंडेशन में रिसर्च फेलों के तौर पर काम करते हैं और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर लगातार लिखते रहते हैं. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.