Underworld Diary: बात साल 1999 की है। मुंबई के सेशंस कोर्ट में एक जज साहब थे। रोजाना कोर्ट में अपराधियों से जुडे मामले सुना करते थे। किसी को जेल भेजते थे तो किसी को जमानत देते थे। किसी को बरी करते थे तो किसी को सजा सुनाते थे। तारीख पर न हाजिर होने पर कभी पुलिस को फटकारते थे तो कभी वकीलों। बडा रूतबा था उनका। अदालत के गलियारों में जब वे चलते तो वहां मौजूद लोग उन्हें रास्ता देते और अगल बगल में सावधान की मुद्रा में खडे हो जाते। एक दिन इन्ही जज साहब के गुमशुदा होने की खबर आती है। कई दिनों की खोजबीन के बाद ये पुलिस के हाश लगते हैं और पुलिस इन्हें पकड कर इसी अदालत के उस कठघरे में खडा कर देती है जिनमें मौजूद आरोपियों की किस्मत का फैसला वे रोजाना किया करते थे। आखिर आरोपियों को जेल भेजने वाला जज खुद आरोपियों के कठघरे में क्यों खडा हो गया।