दंगा पीड़ितों से सहानुभूति जताने में, बयान देने और आरोप−प्रत्यारोप करने में तो राजनीतिक दल आगे रहते हैं, लेकिन जब उन्हें राहत देने की बात आती है या कुछ करने का वक्त आता है, तो सभी फेल कर जाते हैं और इन सबके बीच पिसते हैं दंगा पीड़ित। अखिलेश सरकार भी कुछ ऐसा ही करती दिख रही है।